कळह करै मत कांमणी, घोड़ां घी देतां।

आडा कदै’क आवसी, बाढाळी वहतां॥

[हे कामणी! घोड़ां नै वी देवां जद कजियौ मत कर। कदै तरवारां बाजैला (जुद्ध री बेळा) अै घोड़ा घणा आडा आवैला।]

मंडोर में राठौड़ी राज रा थरपणहार राव चूंडा नागोर फतै कीयां पछै ओडिट रै मोहिल राव मेघराज री कवरी सूं ब्याव करियौ हौ। इण नवी राणी रै फूटरापै माथै रावजी (चूंडा) अेड़ा लट्टु हुया केई दिनां जनानी ड्योढी रै बारै पांवडौ नीं धरियौ। रसोड़ै, तोसाखानै इत्याद रौ सगळौ सराजाम इण राणी नै सूंप दियौ।

राणी थोड़ी मूंजी मिजाज री। घी पिलाईजता घोड़ां नै देख उण नै लखायौ जाणै अठै तौ घी भींतां रै चोपड़ीजै है। उण घोड़ां नै घी देवण माथै रोक लगाय दी। उणनै इण बात रौ गत्तू गिनार नीं जुद्ध री बेळा माता लट्ठ घोड़ घणा काम काडै।

चूंडा कनै कीकर इण बात रा बावड़ पूगा अर उणां पायगा में पूग’र देखिया तौ घोड़ा साव मुड़दार मड़कल टट्टूड़िया व्है ज्यूं लखाया। जद चूंडा आपरी व्हाली राणी नै दूहौ सुणायौ।

राणी आप महापाटक पड़ी, उण दूहौ सुणतां पांग झठ पडूत्तर दियौ—

आक बटूकै भवन भखै, तुरियां आगळ जाय।

हूं तनै पूछूं सायबा, हिरण किसा घी खाय॥

[सायबजी! हिरण किसौ घी खावै। वै आकड़ौ तौ चरै अर पवन भखै पण तोई दोड़ै जद घोड़ां नै लारै राख देवै।]

मोसा बोलां री इण मार सूं रावजी सुट हुग्या। पछै तौ राणी रौ अेड़ौ बख लागौ उणा रावळै रसोड़ै में उपड़ण वाळै घी में कमी-पेसी करदी। अेक दिन आपरी इण सुतलेवड़ाई माथै मोद करती रावजी नै क्ह्यो आपरै अठै पैलां 330 मण घी उपड़तौ अर हमैं कोरौ मण भरियौ घी इज सोरौ सोरौ सज जावै।

करतां करावतां इण मूंजीपणै सूं सगळा घोड़ां रा मरमट गळ ग्या तर राजपूत सूरमां तैतीसां मनाया (ठेका दै ग्या)।

अै बावड़ रावजी रा वैरी चाइल (पिड़ियार), मोहिल अर भाटियां कनै पूगा। इरा रा राज रावजी खोस लिया हा। इणा सगळां भेळा हू अर सल्ला-सूत करी अर सेवट मुल्तान रै साही सेनापति सलेमखां सूं गट्टा-पट्टा कर उण नै रावजी माथै चढा लाया। नागोर कोस पांच-छ अेक री भौं माथै भारी धमचक मची। गाड बायरा सिपाई अर मड़कल घोड़ा रावजी री कीं टेक नीं राख सक्या अर रावजी खेत रिया।

नागोर राठौड़ा रै हाथ सूं निकळ ग्यौ।

[औ वाकौ वि. सं 1480 रै लगैटगै रौ है।]

चत्तरभुज है चतरभुज, सिववाहण सिवदत्त।

समझण वाळा समझलौ, इणरौ कांई अरथ्थ॥

[चतुरभुज तौ भगवान विस्णु जेड़ौ है अर सिवदत्त सिवजी रै नंदिये (बळद) जेड़ौ है। सोजीवान मिनख व्है जिकौ इण रौ म्यांनौ मत्तेई सुभट समझ लै।]

जोधपुर रा पोकरणा बामणा मैं कल्ला चतुरभुज अर सिवदत्त नांव रा दौ भाई जबर तपिया। चतुरभुज महकमा खास मैं अफसर। हाथ पोलौ। हरेक नै हाथ रौ उत्तर देवै। कवियां री खास खातर राखै। न्यात-बास में ठावी ठौड़ अर पूरी पूछ। करतां करतां उण रै जस रा डंका चोंफैर बाजण लागा। जावै जठैई लोग अछन खमां करै। सिवदत्त जोधपुर मैं हाकम। आपनै चतुरभुज सूं सवायौ समझै। मीन-मेख काढण री आदत। बळोकड़ौ जीव। चतुरभुज री सोभा सुण सुण मांय रौ मांय कठमठीजै। आप रै जस रै बखाणां सारूं डुळै। सेवट भोपाळदान नांव रा बारहठ जी अेकर बख मैं झिलिया। अेक आंख रा धणी, महाअल्लाम बारहठजी बिसर बणावण रा उस्ताद। मस्खरी काचड़ां रौ छंद बिसर कहीजै। सिवदत्त री मंसा ताड़ण मैं बारहठजी नै गत्तू जेज नीं लागी। फटकै कवित्त सुखायौ।

हाकम साब रा मस्सा फूलीजण लागा। बारहठजी री सावळ खातर कर चोखी सीख दीवी। हाकम साब कनैं सुणण वाळां रौ तौ टोटौ हौ कोयनी। कवित्त रट रटाय’र फूलीजता आवै जिकण नै सुणावण ढूका। सेवट किणी भलै मिनख समझाया बारहठजी आपरै साथै कुचमाद कर ग्या, आपनै बळद बरण ग्या। हाकम साब घण फीटा पड़िया अर जस री भूख छोडी।

फिट बीदां फिट कांधलां फिट जंगळधर लेडांह।

दळपत हुड़ ज्यूं पकड़ियौ भाज गई भेडांह॥

[दलपतसिंघ नै जिण गत घेर अर कैद करियौ अर गाडरां दाई थै भाग छूटा उण सारूं बीदावतां, कांधलां अर जंगलदेस (बीकानेर) रा सियाळियां थानै फिट है।]

इण दूवै रै गरभ मैं इतिहास री अेक बात अजै केवटियोड़ी है। ईसवीं सन् 1612 मैं बीकानेर रौ राज संभाळियां पछै महाराजा दलपतसिंघ अेक बार दिल्ली दरबार मैं ग्या। पछै जीव फाट ग्यौ। आप जहांगीर बादसा कित्तीऽ बेळा नेवरा करिया तोई कीं कीं इल्लम टिल्लम करबौ करिया। दिल्ली हाजरी देवण सारूं भवै नीं ग्या।

महाराजा दलपतसिंघ अर वांरै भाई सूरसिंघ मैं खटपट बैवती। सूरसिंघ नै सागेड़ौ मोकौ लाधौ। दलपतजी रै खिलाफ कीं कीं घसकां घड़ नै जहांगीर रा कांन अेड़ा भरिया सेवट जियाउद्दीनखां री अगवाई मैं बीकानेर माथै मुगली फौज मेलीजगी। बीकानेर रा घणकरा सिरदार इसा बेळा सूरसिंघ रै पख्खै रा वळु बण ग्या। दलपतसिंघ नै सिरदारां री रूण रौ गत्तू कीं गिनार नीं। मुगली फौज रै चढ़ आवण रा बावड़ लागा जद दलपतसिंघ उण सामां पग रोपण रै मत्तै सूं कूच कियौ। चुरु ठाकर भीमसिंघ बलभद्रोत इसा बेळा पैला तौ महाराजा रै साथै रिया पण बख लागतां पांण वांनै काबू कर हाथ लारै बांध दिया। पछै महाराजा री फौज जुद्ध मैं टिकती कित्तीक। महाराजा नै अजमेर लै’जा अर अन्ना सागर रै निचलै पसवाड़ै जहांगीरी म्हैलां मैं जरु कर दिया।

सत्ताजोग सूं थोड़ा दिनां पछै हरसोळाव (नागोर जिलौ) ठाकर हाथीसिंघ चांपावत आपरै सासरै जावता मारग मैं अजमेर रुकिया। अन्ना सागर री पाळ माथै डेरा करिया। उठै कीं पिणयारियां आई। वां मांय सूं अेक जणी पूछियौ अै अेडा अणी कणीं वाळा मिनख कुण है? जद उण नै बतायौ अै राठौड़ है तौ मोसा बोलती वा कह्यौ धरती माथै राठौड़ अजै भळै जीवै है कांई? उण दूवौ सुणायौ।

लुगाई रै मूंडै सूं निकळियोड़ा मोसा बोल हाथीसिंघ अर वांरै साईनां रै डांम रा चड़कां ज्यूं चिपिया। सेसू छोड़ दलपतजी रा बावड़ लिया अर मिळण पूगा। पोरै वाळां मिळण नीं दिया जद तरवारां बाजा लागी। थोड़ी ताळ मैं इज पोरै वाळां नै परा मार अर दलपतसिंघ नै छोडाया। वाकौ 25 जनवरी 1614 रौ है। दलपतसिंघ नै साथै लै’र जोधपुर धकी बईर हूवता इज हा अजमेर रै सूबेदार री फौज आय पूगी। भारी घमसाण मच्यौ। मरणी करणी करियोड़ा मुट्ठीक भिड़मलां केई तरवारियां रा पोखाळा करिया। सेवट वैरी री कोड़ीदळ फौज भारी पड़गी। खरीकै सूरमावां दाई हाथीसिंघ अर दलपतसिंघ दोनूं, वैरियां रा परखच्चा उडावता उडावता सेवट कट मरिया।

इण सूरमाई रै पांग बीकानेर गढ़ री सूरजपोळ तांई घोड़ै माथै चढियोड़ा जावण री छूट चांपावतां नै मिळीयोड़ी ही।

मरजौ मती महेस ज्यूं राड़ बिच पग रोप।

झगड़ै मैं भागौ जगौ उण पाई आसोप॥

[महेसदास दाई रण भूमि मैं पग रोप अर भवै मत मरजौ। जूंझारा नै सैसार कीं जस नी देवै। जगराम तौ कायरां री गत जुद्ध खेतर सूं भाग छूटौ हौ पण उणनै आसोप रौ पट्टौ दिरीजै है।]

महेसदास कूंपावत जोधपुर राज रै ठिकाणै आसोप रा जागीरदार हा। ब्यांव करियां पछै वै जोधपुर दरबार विजैसिंघ कनै मुजरौ करण ग्या। वां रै केसरिया जामौं अर तुर्रा किलंगी वाळी केसरिया पाग समैत ब्यांव रा गाबा इज पैरियोड़ा हा। उण बेळा मराठां सूं झगड़ौ हूवतौ हौ।

महेसदास नै इण गत सज धज नै दरबार मैं जावतां देख’र कोई मोसा बोल बोलिया ठाकर साब तौ केसरिया धारण कर आया है वैरी आंरी वीरता सूं घबरीज अर भाग छूटैला।

ठाकर महेसदास अै मोसा बोल सुणिया अर जीव मैं धारली मरणी करणी कर नै ईं केसरिया बानैं रौ ठरकौ जरुर राखणौ।

दरबार सामी निजर नोछावर करियां पछै जुद्ध मैं जावण सारु सीख मांगी। महाराज कह्यौ ठाकर साब अजै तौ आप ब्यांव कर नै आया इज हौ, हाथ रा कांकण डोरा खुलिया कोयनी। पण महेसदास तौ साके री धार राखी ही। जुद्ध में मराठां रै फ्रांसीसी सेनापति डिबोयनै री साप्रंत मौत बरसा-वती तोपां री भौम फेर महेसदास सरग सिधाया।

जुद्ध पछै महेसदास कूंपावत रै कंवर नै तौ कीं नीं दियौ अर हाजरियां रै कैवण माथै जुद्ध सूं नाठण वाळै जगराम नै महाराजा विजैसिंघ आसोप रौ पट्टौ दियौ। इण बाबत कवि हुक्मीचन्द दूवौ कह्यौ।

सिंहा सिर नीचा कियां गाडर करै गलार।

अधपतियां सिर ओढणी तां सिर पाग मल्हार॥

[सूरवीरां नाड़ नीची करली है (परतंत्रता अंगेज ली) गाडर उछळ कूद करणा लागी। राजावां डर नै चूंदड़ी ओढली, हे मल्हारराव थारै माथै मैं जीत री पाग बंधियोड़ी है।

मल्हारराव होल्कर सूं डरपीज राजस्थान रा कित्ताई राजावां उण सूं करारनामा करण री अरज करी। राजस्थान री आन-बान अर सूरवीरता

नै भूल अर वै परवस हूवण री तेवड़ी ही।

इण अबखी बेळा कवि राजस्थान रा राजावां रै चेतावणी रौ चूंठियौ चमठावतां दूवौ कह्यौ।

इण दूवै सूं राजावां री ऊंघ उडी, स्वाभिमान जागियौ अर मल्हारराव री फौज रै सामां पग रोपण री तेवड़ी।

स्रोत
  • पोथी : टाळवां निबंध ,
  • सिरजक : जगदीससिंघ गहलोत ,
  • संपादक : जहूरखां मेहर ,
  • प्रकाशक : हिन्दी साहित्य मन्दिर ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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