सुखिया सब संसार है खावै अरु सोवै।
दुखिया दास कबीर है जागै अरु रोवै॥
अजी वाह जी कबीरदासजी, थां होया जस्या और कोई नै होया। थांनै खी म्हारा मन की बात।
बुजुर्ग खै ग्या छै कै अेक बार बारणा सूं माथो फूट जावै तो दूजी बार धसबा सूं फैली ई माथो नीचो कर ल्यो। यो होवै छै तजुरबा को फायदो। म्हांनै कबीरदास जी का तुजरबा सूं फायदो उठायो वै सन्तजी जतना जाग्या उतना ई रोया। अब म्हूं बी जागूं तौ म्हंसूं ज्यादा गैळसप्पो कुण? तो भैय्याजी म्हंनै तो बाणी सुणता ई गैंठ बांधली के ताण खूंटी’र सोओ। जतनो सो सकै उतनो सोओ। जतनो जागरण माथासूण सूं आण पड़ै उतनो ई जागो। फेर सो जाओ। जतना जागो ऊं में बी मोको देख’र जतना ऊंग सको ऊतना ऊंधो। कुरसी पै बैठ’र ऊंगो तो परमानन्द अर खूंटी ताण’र सोओ तो ब्रह्मानन्द। चार्यूं मेर आणन्द ई आणन्द। रोबा द्यो रोबा हाळां नै।
कतना ई हाडक्यां तोड़ो, गैंती-फावड़ा चलाओ अर पसीना पूंछो, पण नतीजा को वाई सीफर। पांव ढांको तो माथो उघाड़ो, माथो ढांको तो पांव उघाड़ा।
मलबा लागै तो घरां बैठ्या ई ‘पाचां पूर बिघन दूर’ छप्पर फाड़’र मोती बरसै। अर छूटबा लागै तो मंडी मोरड़ी हार नगळ जावै। सब तकदीर का खेल छै। बैमाता नै चपका दी हाथां में रींगट्या कै, कांईं तो होणो अर कांईं नै होणो। फेर कांईं की माथापच्ची। पैदा करबा हाळो पेट भरबा को सूत बी भड़ा दै छै। क्यूं हाय-हाय करां। क्यूं जागां अर क्यूं रोवां? संजीवण नुस्का पै अमल क्यूं नै करां? करां तो या करां कै खावां अर सोवां।
म्हांकी जन्दगाणी को लेखो संभाळो तो घणी बातां जमाना यूं उलटी। लोग तो दन में जागै अर रात में सोवै। अठी म्हां रात में जागां अर दन में सोवां। कॉलेज का दना में सारा दोस्त भायला झालर बाज्यां भेळा होता अर कूंकड़ी बोल्यां बछटता। आधी रात तांई तो रामपुरा की पीपळी का फैरा पै फैरा। बाजार सून्यो पड़्यां पाछै चामळ तीरां की ग्यान-गोष्ठियां। लोक परलोक सब म्हांकी मूठी में। बातां करतां-करतां ई लोट जाता। नींद को मजो आबा लागतो तो तावड़ा की चळकी जगा देती। जागतां ई जमाना भर का खटकरम, अब सोओ तो कद सोओ।
पढ्यां पाछै नौकरी करी तो अखबार की। छै बज्यां हाजरी भरता तो रात की दो बज्यां छूटता। तीन बज्यां घर-हाळी सूं शान्ति वार्ता सरू होती तो समापन होतां-होतां पांच बज जाती। फेर सोता तो जागबा में दिन की पूरी ‘बारा’ बजती।
आगै जा’र धन्दो तो बदळ्यो पण जूण नै बदळी। पढ़ाबा में कॉलेज मल्यो, पण रात पाळी को। अेक बज्यां फैली सोबा को काई काम। गरज या कै आज को दिन आतां-आतां तो रात अर दिन का सारा सरोदा ई बदल ग्या। ब्राह्म मुहूर्त बातां में तो घणो सुण्यो, पण भोग्यो खदीं नै। म्हारी सुणो तो ब्राह्म मुहूर्त को असली भोगबो बी सोबा अर ऊंघबा में ई छै। न्हाबो धोबो अर कसरत का नांव पै सड़क्यां में रोता फरबो तो दिन में ई हो सकै छै, पण घटूयां उराव की मीठी नींद भागवानां का ई भाग में छै।
घणी खुसी की बात तो या छै कै अब तो आपणां बाळ-गोपाळ मोड़ा सोबा अर मोड़ा उठबा की मरजाद कै तांईं परवार की ईजत समझ’र नभा र्या छै। अेक सपूत तो म्हांनै कोसां पाछै छोड़ ग्यो। वै नवाबजादा रबड़तां-रबड़तां बारा अेक बज्यां तो घरां आवै। फेर खाबो पीबो करै। अमल पाणी करै। अखबार पढ़ै। साथी भायला आ जावै तो वां सूं बातां करै। अर सलसलो अतनो चालै कै दूसरा दन की ‘बेड टी’ ल्यां पाछै सोवै।
अर ज्यादा खुसी की बात या कै सोयां पाछै ऊं सपूत कै तांईं कोई माई को लाल जगा तो लै! कतनां ई ढोल-मंजीरा बजाओ जो ब्रह्म में लीन ऊंको थांकी माथा फोड़ हूं कांईं काम? संत की समाधी जसी नींद।
सोबा की बात चाली तो ऊंघबा की बात करबो बी जरूरी छै। ऊंघबो मनख जमारा को सुभाव छै। आपण हाड़ौती का लोग यूं बी ऊंघबा में ओरां सूं आगै छां। खेतां में बीज पटक्यां पाछै करां बी कांईं। फळ तो भगवान दैगो। आपण क्यूं दूबळा होवां। कांईं नै करां तो ऊंघबा सूं बी क्यूं जावां?
यूं ऊंघबा को सबसूं मजादार नजारो देखबो छावो तो दफ्तरां में पधारो। हाजरी का नांव पै तो सारी कुड़स्यां ठसाठस, पण काम का नांव पै फकत ऊंघबो। फेर ज्यांकै चसमां बी लाग र्या होवै, तो वांको ऊंघबो तो हाकम को बाप बी नै पकड़ सकै। अर ईं को सबूत बी काईं कै आप ऊंघ र्या छा। जवाब मळ सकै छै कै फाइल पै नोट लगाणो छो, जींसू बच्यार कर र्या छा। अब करो तो कांईं कर लैगा? यो हुकम कुण दै कै नोट लगाबा कै फैली बच्यार मत करो।
म्हांका दफ्तर में बरसां फैली अेक दाना मनख छा। वै म्हांका हुकम सूं दैनिक डायरी में रोज को काम मांडै छा। वै मांडता –
सात मई – दो गीतों का मनन किया, दो गीतों का अर्थ किया।
आठ मई – तीन गीतों का मनन किया। अेक गीत का अर्थ किया।
अब बोलो। ग्यानी लोगां को दफ्तर। बनां मनन कै काम बी कस्यां हो सकै छै। अर मनन कै वास्तै ऊंघबो ज़रूरी छै। बना ऊंघ्यां आप दमदार मनन नै कर सको। ऊंघबो अवचेतन की स्थिति छै। सारी इंद्रियां आळ-जंजाळ सूं मुक्त हो जावै छै। सत बी जदी उजागर होवै छै। साक्षात् ब्रह्म सामै आ’र ऊंदो हो जावै छै।
‘Early to bed and early to rise’— यानी बेगो सोबो अर बेगो जागबो अक्कीसवीं सदी में नै चाल सकै। दुनियां का मुलक तरक्की की डाफां दे र्या छै। वै सब मोड़ा सोवै छै अर मोड़ा जागै छै। क्लबां को नाचबो, गाबो, खाबो, पीबो, सारी मोज मस्ती में आधी बीततां कांई देर लागै?
बेगा उठबो वां लोगां की मजबूरी छै ज्यो बूढ़ा होग्या। काम धंधा सूं छूट ग्या तो नींद बी पराई होगी। अब करै तो कांई करै। बस बेगा उठो न्हावो धोओ अर ‘हनुमान चाळीसा’ का पाठ करो।
पण म्हां काम धंधा हाळा आदमी। म्हांनै तो तरक्की करणी छै। देस आगै सरकाणो छै। बना ऊंघ्यां अर बना सोयां म्हां कांई मीर मार सकां छां। फेर क्यूं सास्तरां का भाटा फैंक अर म्हांका ऊंघबा-सोबा को मजो बगाड़ो छो। घणा जाग ल्यां अर घणा मांगल्या। पोथ्यां पढ़तां-पढ़तां माथो भरणा ग्यो, फेर बी अतना पाछै रैग्या।
हे ग्यान दाता! अब ठण्डा पड़ो। म्हांनै बी सोचबा द्यो, बच्यारबा द्यो, मनन करबा द्यो, ऊंघबा द्यो, सोबा द्यो, जींसूं जाग्यां पाछै नुओ गेलो पकड़ां अर नई तरक्यां जकड़ां।
कोई मानै तो मानै— नै मानै तो चूल्हा मैं पड़ै। सो ग्यान को अेक ग्यान तो यो ई छै कै—
जाग्यां दुखड़ो जाण, कुटुम कबीला पेट को।
सो जा खूंटी ताण, जो सुख छावै बावळ्या॥