विसाल भाल तोप को विसाल जाल वित्थुरे।

धमंक भू धुजावनीं घमंक मेघलों घूरे।

महान रंज दब्बुनी अरीन दब्बुनी मही।

कथे कबीर ने कही चिराव की चही चही॥

तनू प्रबन्ध तोप के तुरंग कन्धते तने।

भुजालि आलि भोलि तें वहे विभा विभावने।

बरिट्ठ में बरिट्ठ जे बहेक तिब्र सालि तें।

गरिट्ठ में गरिट्ठ तें गुने कती गजालि तें॥

प्रधान गोल कप्र मोर सोर कोस संग्रहे।

उदग्ग खग्ग मग्ग में विबग्ग अग्ग की गहे।

चमूय शस्त्र अस्त्र लेय दिव्य दिग्विजै चढ़ें।

स्वसुद्ध उम्मरेस की विसुद्ध भारती बढ़े॥

बनै बरोल बाहनी हरोल हीय हारसी।

हलें हवन्द हेसतें सजें गयन्द सारसी।

खलांत केतु पन्ति दन्ति पन्ति पत्र भेटुलें।

तुखार पक्यु रेखरे त्रत्तक्युरेन्न भेतुलें॥

उड़े तुरंग तें रजी समग्ग धावती अटे।

छके छकांन छावती छिता विछावती छटे।

नटे निसान नादत्युं तमाम धाम में तनें।

बितान आन रेनु को अचान भान के वने॥

दिसा दिसान मान तोप माननीय की दगे।

अडोल चक्र नक्र मक्र आननीय व्हे अगे।

विपत्थ पत्थ पत्थ से विपत्ति को बहावनी।

खिजे समत्थ मत्थ में समत्थ अत्थ खावनी॥

खरे अराति खेत चेत हेत कों खतावनी।

सदा अबोध बोध बोध सोध कों सतावनी।

चलें कुचार बार कों सुचार में चलावनी।

हलें हसन्ति हिक्कली हरम्म को हलावनी॥

गिनो मदन्ध सोख जोख गोख को गिरावनी।

फबें फिसाद मन्द कों सु फेट दे फिरावनी।

हरांम खोर चोर कों कुहक्क दे हरावनी।

कराल कंठ कंकनीय डंकनी डरावनी॥

घुराय गेल की छटा कटी घटा घुमावनी।

पराति धार छार में पछार के पुमावनी।

तमाम शत्रु संग की प्रताप तें तपावनी।

खलांन कोम भोम खोम तोम को खपावनी॥

लसे प्रताव तावदे लदाव को लदावनी।

सदैव बैरि मीच बीच मीच को सदावनी।

भिरे अभित्ति भित्ति को सबुज्ज के भवावनी।

बिना प्रस्वेद वित्त कों करोर हां कमावनी॥

गनीम गड्ढ गव्वतीय गब्भ को गमावनी।

जहान आन मान जोर सोर ते जमावनी।

रही प्रतच्छ रच्छसी दुगच्छ गच्छ दच्छनी।

लगें विपच्छ लच्छ पें भुजग वच्छ भच्छनी॥

घुमाव लोल गोलकी प्रघत्त बोलती घलें।

हरोल गोल धोलदें चन्दोल चोलती हलें।

विथ्यं जनेच्छनी प्रचोल गोल घोलही वहें।

सतोल तोल तोल सें वितोल तोलती वहें॥

दुसो अमोल खोल देत झोलते खगोल को।

भ्रमाय तोल मोल लेत गोल दे भुगोल को।

प्रसिद्ध पोल पार हेत टोल दे पहार में।

अडोल डोल टोल लेत अप्पनें अहार में॥

चलें चनदोल चैन में हरोल दग्गती चलें।

दरार हेत द्रुग्ग को चिरार चुग्गती चलें।

प्रकोट चोट मार कोट लोट पोट ह्वै जहां।

प्रवेस कोट रोक देन बप्प बप्परे कहां॥

उडें कपार काटतें विलग्ग अग्गला अटें।

फबें बुराल चालतें अकाल खुप्परी फटें।

अवज्ज बुज्ज के अरें सु बुज्ज-बुज्ज बेरला।

कहे इला भली सला बचें नहीं किला किला॥

वना विहार तें वहे मना किये ह्वै मनें।

अभत्त भंडनी अयान नित्त रंडनी जनें।

इसा महा अभग्ग भग्ग रग्ग गावते रमें।

नमें सुसील आवते दुसील जावते नमें॥

अनेक पें अनेक हत्थ इक्क सत्थ अच्छटे।

पहार छार-छार व्है प्रबी प्रहार पच्छटे।

भुलम्ब अम्ब-खास कें प्रबम्ब बम्ब की भरें।

प्रलम्ब लम्ब थम्ब पें प्रपत्त सम्ब सी परें॥

पिनिद्ध बद्ध बद्ध रे अनुद्ध अद्धरे परे।

दुसार पार दुग्गब्हे प्रद्धुग्ग पद्धरे परे।

अखंड खंड मंड पें अदंड दंड दंडव्हें।

हिकंड खंड दो नहीं अखंड खंड-खंड व्हें॥

प्रचंड लोट पिंड के धके प्रचंड के परें।

वितुन्ड तुंड तुंड लों झगे त्रभंड व्हे झरें।

प्रजोध जोध कुप्पिके प्रधाव धप्पि दे परें।

महा गरूर पूर शूर दूर दूर तें मरें॥

अभीति वीति कुंड देय चंड-मुंड ज्यों अरें।

अकाल चंड चंडिका त्रखंड संड लों तरें।

सुनूर सूर संभ के निसंभ से हसें नचें।

कृपालि कालिका अगें बालि बालिका बचें॥

महा गंभीर धीर बीर इक्कतीर तें मुरे।

दुखी अमीर नेंन नीर मीर पीर तें दुरें।

चलन्ति फैर फैर पें विलैर जैर की चलें।

हठी हमीर से प्रबीर हैर ठैर के चलें॥

धरा प्रचार धूर में समग्ग बग्ग कों धरें।

मुरें अराति मग्ग में पग्ग अग्ग में परें।

कृपा कटाच्छ गोल की विलोल जाहि धां कमें।

रजै बिक्रांत सान्त में कृतान्त आन्त में रमें॥

प्रयाति चोल-गोल की भनंक पोल में परें।

धपे प्रसूर पूर लें वियांन थांन में धरें।

चिरे वहित्थ हत्थि के चिकार चूर चूर ह्वै।

भिरे भटालि भाल में भिखार भूर-भूर ह्वै॥

छिता अफंड छंड के प्रचंड ज्वाल तें छिपें।

चँडाल चोर् अरीन में महा चिंडाल सी चिपें।

भगे कनूर भूरि भैंस तूर तूर ह्वै भजो।

मरे विशूर शूर के मकूर कन्न ले मजो॥

वगो वगो हहा अबैंन वाह वाहते बमें।

भगो भगो अहासु भीरु चाह चाहतें भनें।

मुरें अवान बानले प्रयान में कठा मठा।

अरेन प्रान फायदें बिफायदें सठा सठा॥

धुरीन तोप की अलात धोर सोर पें धरें।

प्रदीपमान हेति-अच्छ स्वच्छ अच्छ में परें।

दुदन्ति कामनी धरे जरे अरी जुदा जुदा।

हमन्ति ह्वे मुदामनी गुदांत मीह सें गुदा॥

धुनन्ति सोर धोर तें असिम्म अग्गि उच्छरें।

जरे अगालि ज्वाल तें तथा तरावली तरें।

अभग्गि अग्गि के अगे सुभग्ग भग्गते सुनें।

उदग्ग पग्ग बिग्गि आसु पग्ग लग्गते उनें॥

दुजीह कूर मूर को प्रदूत दूरती दहे।

विधांन वक्र चक्रतें प्रचक्र चूरती वहें।

निपांन थांन थांन में विधूर पूरती वहे॥

विशाल गोल-कावली कंपाल झम्पती बहै।

विसाल ब्याल-ब्याल में विहाल दम्पती बहै।

मदैं अमांन मांन तें बिमांनु ढम्पती बहै।

वदैं पसू बसू मती विनम्म कम्पती बहै॥

गिराब गड्ढ गड्ढ की विगड्डे छड्डती बहै।

बकारि बैरि बृन्द को डकार डड्ढती बहै।

बडे निसंक बंक की विबंक कढ्ढती बहै।

रहेसु संक रंक की विसंक बढ्ढती बहै॥

चिदन्ध मन्द कन्ध के सुबन्ध खोलती चले।

हिलोल अन्ध धुन्ध के प्रबन्ध डोलती हले।

वृथा अजुज्ज जज्जतें प्रजुज्ज जंडती वहे।

विसाद पुंज पुंज के प्रभुंज गुंजती वहे

छली विजत्ति तत्तिकी सुछति छोलती वहे।

विजेत नंत रेत पेसजेत बोलती वहे।

रिपुग्ग देत्य कंस सी अजेत सल्लती रहे।

विजेत बीर बंश की विनेत घल्लती बहे॥

नरेस देस देस के निदेस मानते रहे।

रुखारनो-पहार वा सुसार आनते रहे।

खरे प्रचीस खेतते करें त्रतीस दे कढें।

प्रतीस का असीस दे कवी त्रतीसका पढ़ें॥

स्रोत
  • पोथी : ऊमरदान-ग्रंथावली ,
  • सिरजक : ऊमरदान लालस ,
  • संपादक : शक्तिदान कविया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार ,
  • संस्करण : तृतीय
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