सुधा प्रपूर दीप जोति हा उदोति नासिका।
समान तान उप्पमान मान कीर त्रासिका॥
नसग्र थान नत्थ कत्थ मानमत्थ फंदनं।
सुरासुरं गुरं दु मद्धि सद्धि भोम नंदनं॥
उरौज संभु श्रीफलं भकुंभ कुंभि कुंदनं।
जरीन झीन फूंदनीन कंचुकी त्रिसाननं॥
सुखीन झीन लंक भृंग संक रंक वाधनं।
मृगाखि साखि ता मृगाखि रारिवारि साधनं॥
मनी प्रबंध बाजुबंध जोत मंध राजही।
झुलति डार चंदनी फनी कुमार लाजही॥
नितंब तुंग व्दै मतंग जग भै विरंचियै।
मृगारि लंक अंक संक तंक आड संचियै॥