करे रखी न भोमका अनाद आद सूं कणी।
धरा परंत तोजसा अनेक हो गया धणी।
मही प्रमार री थिरू हुती धुराद मंडसूं।
अरोग बोम, भूप आप हौ जिकौ अफंड सूं॥
विसासघात गोहिलां निपात डाभियाँ बुरी।
करे कमंध चूक जोम भोम आप री करी।
विड़ांण वीच ढांण दे, उजाड़ सूं विगाड़ सूं।
चलाय दूं हिमायती खगांन धार चाड़सूं॥
हजार डौढ़ आदमी चढ़ै सवार हाजरी।
विधूंसदै जरायतां रखै न कांण राजरी।
डरूं न मींच भींच सूं वधायदूं सदायती।
हलै न आंन कोय जींदराव पे हिमायती॥
करी विगाड़ घोड़ियां मनूं न कूक यूं कढी।
घली है साब जींदराव खागजोर सूं गढी।
छतीसवंश मो कनै, दयै न त्रंब दांम ने।
ठहै न वात आ अठै, खड़ौ तुरंग ठांभनै॥