हरी हरी'ज पानड़ी लागै घणी सुहावणी।
कळी फबै है फूटरी मनां-तनां लुभावणी।
पणां संभाळ कांटा इणरा घणा खराब है।
लख्यो ललाम लाल वो गुलाब लाजवाब है॥1
कळी-कळी म्हैकती गळी-गळी सुबास है।
सुगंध चारू कूंट में हरे'क रो ओ खास है।
जणां-जणां मनां तणो रिझावणो जनाब है।
लख्यो ललाम लाल वो गुलाब लाजवाब है॥2
गुलाब तो गुलाब है न और कोई नाम है।
सुगंध नै बिखेरणी सदा जिणी रो काम है।
हंसी हंसी लुटावणी खुशी'ज अेक ख्वाब है।
लख्यो ललाम लाल वो गुलाब लाजवाब है॥3
गुलाब री कळी-कळी नै तोड़नै टुकड़ा करो।
गरम तेल भर्यो कड़ाव आग ऊपरां धरो।
तऊ सुबास रो प्रसार आपरो सुभाव है।
लख्यो ललाम लाल वो गुलाब लाजवाब है॥4
अनेक रंग रूप मांय बाग-बाग ओ मिळै।
सुश्याम-स्वेत लाल पीत भांत-भांत में वळै।
तऊ सुगंध अेक सी किती अजीब बात है।
लख्यो ललाम लाल वो गुलाब लाजवाब है॥5
गुलाब री ना जात-पांत धरम पंथ भी नहीं।
चढे मजार मोद सूं 'र मूरती मढां महीं।
शवां शिंगार भी हुवै किती अजीब बात है।
लख्यो ललाम लाल वो गुलाब लाजवाब है॥6
गुलाब रंक राव रो ना भेद लेस देखतो।
ना ऊंच नीच देखतो ना क्रूर संत पेखतो।
सुगंध भाव सूं भरी पढी घणी किताब है।
लख्यो ललाम लाल वो गुलाब लाजवाब है॥7
ना नाम दूसरो मिलै गुलाब तो गुलाब है।
सुवास फैलती रेवै दिगंत मात्र काम है।
गुलाब भेंट क्यूं धरूं विनैं जो खुद गुलाब है।
लख्यो ललाम लाल वो गुलाब लाजवाब है॥8