कहूँ भटा समत्थ कै दया समत्थ सत्थ दे।

समत्थ अत्थ साधने समत्थ में समत्थ जे।

अखंड ब्रह्मचर्ज के सिखंड खंड अज्ज के।

सधीर ही हमीर से गंभीर भीर गज्जते

धुरा सुघाट घाट के कपाट छत्ति के धरें।

घनं प्रतच्छ तच्छ के प्रदच्छ स्कच्छ के घरें।

सुशील सभ्य साच्छरं श्रुति प्रमान सोहनें।

अभंग पुत्ति ओज के मनोज मूर्ति मोहनें॥

अमोल तोल मोल के प्रचोल चोल अंख के।

अडोल डोल कन्ध के विडोल ने असंक के।

विशाल भाल कन्धरा रसाल छत्ति युत्थरे।

रहें पदग्ग रेखतें सुदेखतें अरी डरे॥

प्रचंड बाहु दंड के भये प्रचंड पिंड में।

घमंड को घटाय दे मिले सो भुमंड में।

डरे सिंघ- डोल ते स्वय डोल ते डरावने।

करोल टोल टोल कोल कोल ते करावने॥

प्रगल्भ कंठ पेल देत कंठ कंठिराव को।

दुहत्थ हत्थ ठेल देत हत्थलैं प्रदाव को।

उन्हें भीत और ते अभीत व्हेन त्यां अगे।

भगेन वाह जान दे नबाह नावरे भगे॥

मिले मीढ मीढ के अरीढ रीढते अरी।

करे ईढ और की उन्हें ईढ को करी।

चरित्र में विचित्र ज्यूं पवित्र में पवित्र जे।

अमित्र के अमित्र त्यूं सुमित्र के सुमित्र जे॥

अद्वेस और ऐश्वरीय जीवना जरयो करे।

मन्या करे मंतव्य की कर्त्तव्य को करयो करे।

भ्रमैं प्रत्युह व्यूह पें समश्नु भ्रूह लों भिरी।

क्र में प्रत्यूह ओपमा दुरूह दन्त लों किरी॥

प्रमांन शास्त्र मात्र को स्वपंडत स्वयम् पढ़े।

गुनीन अग्ग मन्य व्है व्यभ्यास अन्य में बढे।

प्रकांड पाठ पाठ के त्रृकर्मकांड को करे।

तने त्रई उपासना ब्रह्मांड ज्ञान तें तरे॥

अधर्म को आदरे सुधर्म को सदादरे।

करे नहीं अन्याय कर्म धर्म न्याय को धरे।

सुसीख हेति सीख के तमाम तीख आत में।

भले सरीक ईख के भीख मांगते भमें॥

चिराय नव्य नव्य नम्सु भव्य भव्य में चहे।

द्विजन्म पाय हव्य कव्य हव्य वाट में दहे।

धरा सुधेनु छूय छूय दूय दूय धू धरे।

क्रतू समान राजसूय भूय भूय भू करे॥

उचार काट अन्य बाट वेद बाट में बहे।

निराट दाट घाट की नहीं सम्राट की सहे।

बिठोर बाहुदंड कों उदंड ठोरते बहें।

बिघोर शस्त्र अस्त्र झाट टाट फोरते बहें॥

बिजेत बांन जेत के निसांन घोरते बहे।

रसा अरेत रेत को मुखग्ग टोरते रहें।

अगोट चोट देन कों सघोट गोट पें अटे।

हसे प्रखोट मोट को बिफोट कोट तें हटें॥

खरां कहे खरा खरा धरा धुजावते बहें।

विकार हैं कुजा कुजा भुजा खुजावते बहें।

विवक्रि वक्र ह्वे अवक्र चन्न चेंठते बहें।

बिवन्न लंबकन्न के दुकन्न एठते बहें॥

नटालि दे भटालि की जटालि ऐंचते नृभें।

अरीन मुच्छ मुच्छ दें स्वमुच्छ खेंचते अभें।

चलाक रूठ पूठ के अंगूठ चांपते चलें।

हरामखोर सुंड-मुंड झुंड कांपते चलें॥

निनाद बन्ध अन्ध के दुकन्ध त्रोटते नदें।

महान लंठ संठ के कुकंठ घोटते मदें।

हलाकुअल सेल ते सदा उथेलते हलें।

चितार पेट भेट के चपेट मेलते चलें॥

विलोक लोक लोक को प्रलोक लोक की बदें।

तृलोक सोक मेट देत फेंट दे जदे तदे।

लखान मान जान के समान सस्त्र तैं लरें।

अमान थान आनते प्रमान अस्त्र तैं परें॥

स्व बंस को सुधारने विजाति को बिगारनें।

मनें सु मृत्यु वारलों ने समान मारने।

दयालु व्है सर्वथा वृथा दया मया दटें।

मिले जु गुड मुच्छ मुड थुड ऊट के थकेऔ॥

सनिद्धि स्वामि सदा पिनिद्ध पां परया करें।

लरें नहीं सुलोक तें कुलोक तें लर्या करें।

अरें और के अगें अराक तें अर्या करें।

डरें तीन काल दीन बाल तें डर्या करें॥

बड़े सरोस जोस में भरोस अत्थने वहें।

रसा अरोस कोसलों भरोस और के रहें।

थिरा उत्थ थत्थ तें विथत्थ थत्थते वहें।

ऋसी प्रतत्थ तत्थ के प्रतत्थ तत्थते रहें॥

बसू प्रचंड दंडतें प्रचंड दंडतें वहें।

वितंड चंड दंड दें अदंड छंडते वहें।

बिमोह मोह मोह में विद्रोह द्रोहिपें बढे।

कृतांत भांत कोह में कुकोह कोहिको कढें॥

सुचाल चाल चाल के कुचाल चाल ह्वें कदा।

अरी विचाल चाल हैं अचाल चाल ह्वें अदा।

काल तें त्रकाल से त्रकाल काल ह्वें तदा।

सुकाल में दुकाल से अकाल काल ह्वें सदा॥

ठठोर सत्रु गोठ की जबान गोठ लें जबें।

बड़ी मठोठ में बहें दु होठ दन्त तें दबें।

चलें पून दून तें स्वऊन लूंन ते लचें।

बचै छून भून तें स्व खून चून बचें॥

सिकार सूर सिंघ की हकार हत्थतें हनें।

बनें अतुल जोध पें कुल्ल गोध से बनें।

हटी पुमाय हत्थतें हलें घुमाय हत्थि को।

प्रखेल अन्त खेल में खिलाय दे प्रमत्थि को॥

बिसाद तोप साद में वहे हत्थि हत्थतें।

हमें समत्थ काम देय हत्थिको स्व हत्थतें।

हलें हमल्ल मल्लकों करीन ढल्लपें हलें।

बहे ढल्ल घल्लकें स्वढल्ल और की बनें॥

घिरें मथोल घोलतें ओल में घलैं।

चिरें चन्दोल गोलतें चमू हरोल में चलें।

अनत्थ नत्थ नत्थ लें अनत्थ कों निभाय लें।

रिजैं करें निहालरें खिजें खुधाल खायलें॥

मुरें अतोल झोलदें अमोल बोल मिट्ठतें।

दुखी पिछांन दांन दें अखें विहांन इट्ठतें।

विद्वान दान मान दें विधान ह्वे विज्ञानतें।

निदान रीझ खीजतें सुचीज दे निधानतें॥

बहेजु बाट बाट में पिता पिता महा वहें।

सुखी सुबाट ते सदा दुखी दुबाट में दहें।

शरीर संसकार सार नीर छीर से सनें।

विध्वांस वैरि वंस को प्रसंसनीय ते बनें॥

धरा सुजान पाव फूंक फूंक के धरा करें।

लखे समीप काल को कालतें डरा करें।

निकाम आम-भाम को अनुग्गिया भजे नहीं।

निदान प्रान दानलों प्रतग्गिया तजें नहीं॥

रसा बिधान ध्यान के विज्ञान ज्ञान के रहें।

बपू अधीर पीर में नीर नैन तें बहें।

दुकार ब्रह्म द्वार व्हें हकार इक्क हत्थदें।

दुराग्रही विवाद वाद को सवाद सत्थदें॥

परीश्रमी परास्त दें विजेत व्हें परीश्रमीं।

परीश्रमी नास्त ह्वे अजैत हें परीश्रमीं।

करें प्रलाप जाप के त्रताप में अनुद्यमीं।

लगें दरिद्र लच्छों समुद्र छुद्र उद्यमीं॥

स्वतन्त्र मन्त्र तन्त्र सें युरोपियन्बदाबदी।

खराब अज्ज अज्जके खुसामदी खुसामदी।

कहां ब्रटेन भूति हा जनें प्रसूति केसरी।

असेस अस देस की विशेष व्याति वेसरी॥

सुभग्ग देस को जहां सुभग्ग औतरे सही।

अभग्ग अज्ज देस को अन्देस औतरे अही।

इला अधिच्छ अच्छ की गुनी गुनावली गही।

बतीस लच्छ बच्छ कीं कवी बतीसका कही॥

स्रोत
  • पोथी : ऊमरदान-ग्रंथावली ,
  • सिरजक : ऊमरदान लालस ,
  • संपादक : शक्तिदान कविया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार ,
  • संस्करण : तृतीय
जुड़्योड़ा विसै