अही सू वैंण, मृग नैण, दीप नासका भणूँ।
लिलाट चंद, बीज बंद तिंद्र क्रोध है अणू।
धनूंष भूंह, लाज व्यूह तद्रपि पंकजं मुखं।
करं विसाल चंपडाल ग्री कपोत के रूखं॥
प्रवाल उष्ट वैण मिष्ट दंत वज्र के कणं।
सुरं कलापि कोकला कनंक कुंभ से स्थणं।
गजंद सूंड नाभ कूंड पेट पत्र पीपलं।
नितंब तंब जंघ रंभ केहरी कटी मिलं॥
गति करिंद की प्रभा पदां रविंद ओपमा।
गुमांन मोख इंद्र विद्यमांन जोति लोपमा।
पतिव्रता सो पीव के हणंत आध व्याध कूं।
उदार मेरू सक्ति हेरू जोग के समाध कूँ॥
मनोव्रती सु व्रम सी अनोप रूप गौर सो।
महाबळी त्रकाळ पे विरंच बोध जोर सो।
वनागतीज व्योम सी रु सीत है तूहीन सो।
सदागती सी श्रेष्ट है, रू ताप है दिनेस सौ॥
सरूप दिव्य अंबका सुदेह तेजत के मई।
कहूं कविंद मोड नेज सो दई दू खोजही।
कही स ओपमा अनोप धी जिती कविन्द्र की।
माहा सू सूरवीर की जनेत है जतेन्द्र की॥