रहे राम रामं, दहे कूर कामं।

अकामं अरूपं, अखंडे स्वरूपं।

नहीं पांचतीन,परापार लीनं।

महा तेज नूरं, उदै बोहो सूरं॥

स्रोत
  • पोथी : स्वामी रामचरण : जीवनी एवं कृतियों का अध्ययन ( रामरसायन बोध कृति से उद्धृत) ,
  • सिरजक : स्वामी रामचरण ,
  • संपादक : माधवप्रसाद पाण्डेय ,
  • प्रकाशक : हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग ,
  • संस्करण : प्रथम