कच्छ रूपी किरतार, मल मद कीचक नै हन्यो।

बैठो समंद मझांर, वेद लिया ब्रह्मा तणो।

वेद लिया ब्रह्मा तणो, नै बैठो समंद मंझार।

रीता हाथां जगत गुरु, हरि से करी पुकार।

वासग ने तो मेर मथाणी, कर-कर सांई सार।

इण विध रूप रचियो मेणावत।

कच्छ रूपी किरतार, मल मद कीचक नै हन्यो॥

स्रोत
  • पोथी : जांभोजी विष्णोई संप्रदाय और साहित्य ,
  • सिरजक : आलम जी ,
  • संपादक : हीरालाल माहेश्वरी ,
  • प्रकाशक : सत साहित्य प्रकाशन, कलकत्ता ,
  • संस्करण : द्वितीय
जुड़्योड़ा विसै