बाबो धार्यो नरसिंह रूप, पत राखी पहलाद की।

छूट गई करतूत, आवाज सुणी सिध साध की।

आवाज सुणी सिध साध की नै, भाज गयो अंहकार।

दाणु भाग्यो डरपा लाग्यो, कर पकड़यो करतार।

किया पावे आपका, खाड खिणंता कूप।

आलम संता कारणे, बाबे धार्यो नरसिंह रूप॥

स्रोत
  • पोथी : जांभोजी विष्णोई संप्रदाय और साहित्य ,
  • सिरजक : आलम जी ,
  • संपादक : हीरालाल माहेश्वरी ,
  • प्रकाशक : सत साहित्य प्रकाशन, कलकत्ता ,
  • संस्करण : द्वितीय
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