आलिमसाह अलावदी, पूछइ व्यास प्रभाति।

रतन-परीक्षा तुम्हि करो, त्रीकी केती जाति?

त्रीकी केती जाति! कहइ राघव सुविचारी।

रूपवंत पतिव्रता, प्रिय सो होई पियारी।

हस्तिणि कि चित्रिणि सुंखिणि, पुहवि वडी पदमावती।

इम भणइ विप्र साचउ वचन, आलिमसाहि अलावदी॥

रूपवंत रतिरंभ, कमल जिम काय सुकोमल।

परिमल पुहप सुगंध, भमर बहु भमइ वलावल।

चंपकली जिम चंग रंग, गति गयंद समांणी।

सिसि-वयणी सुकमाल, मधुर मुखि जंपइ वाणी।

चंचल चपल चकोर जिम, नयण कंति सोहइ घणी।

कहि राघव सुलितांण सुणि! पुहवि इसी हुइ पदमिणी॥

कुच जुग कठिन कठोर, रूप अति रूड़ी रांमा।

हसित वदन हित हेज, सेज नितु रहइ सकांमा।

रूसइ तूसइ रंगि, संगि सुख अधिक उपावइ।

राग रंग छत्रीस गीत, गुण गांन सुणावइ।

स्नांन मांन तंबोल रस, रहइ अहोनिसि रागिणी।

कहि राघव सुलितांण सुणि! पुहवि इसी हुइ पदमिणी॥

वीज जेम झबकंति, कंति कुंदण ज्युं सोहइ।

सुर नर गण गंध्रव्व, पेखि त्रिभवन मन मोहइ।

त्रिवली तलि तनुलंक, वंक बहु वयण पयंपइ।

पतिसुं प्रेम सनेह, अवरसुं जीह जंपइ।

सांमि भगत ससनेहली, अति सुकमाल सुहामणी।

कहि राघव सुलितांण सुणि पुहवि इसी हुइ पदमिणी॥

धवल-कुसुम-सिणगार, धवल बहु वस्त्र सुहावइं।

मोताहल मणि रयण, हार हृदय स्थलि भावइं।

अलप भूख त्रिस अलप, नयणि बहु नीद्र आवइ।

आसणि अंग सुरंग, जुगतिसुं काम जगावइ।

भगति जुगति भरतारसुं, करइ अहोनिसि कांमिणी।

कहि राघव सुलितांण सुणि! पुहवि इसी हुइ पदमिणी॥

स्रोत
  • पोथी : गोरा बादल पदमिणी चउपई ,
  • सिरजक : हेमरतन सूरि ,
  • संपादक : मुनि जिनविजय ,
  • प्रकाशक : राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर ,
  • संस्करण : द्वितीय
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