उदिम करि रे आदमी, उदिम दाळिद जाय।

जीभ विसन को नांव ले, अहनिस साम्य धियाय।

अहनिस साम्य धियाय, ध्यानं धरि हरि सूं राची।

करौ विसन की सेव, मेल्य दे सेवा काची।

ग्यान कथा मां संभल्यौ, तीन्य लोक को राय।

विसन जंपो उदिम करौ, पाप पराछित जाय॥

हे मनुष्य कर्म कर, उसी से तुम्हारी दरिद्रता दूर होगी, जीभ से विष्णु का स्मरण कर और रात दिन उसी स्वामी का ध्यान कर, इसी ध्यान से हरि प्रसन्न होंगे। अन्य की सेवाओं को छोड़कर विष्णु की सेवा करनी चाहिये। ज्ञान कथाओं में हमने सुना है कि विष्णु भगवान तीनों लोकों के स्वामी है। विष्णु के जपने का श्रम करो, जिससे पाप नष्ट होते हैं।

स्रोत
  • पोथी : वील्होजी की वाणी ,
  • सिरजक : वील्होजी ,
  • संपादक : कृष्णलाल बिश्नोई ,
  • प्रकाशक : जांभाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : तृतीय