समज तमाखू सूगली, कुत्तो खावे काग।

ऊंट टाट खावै आ, अपणो जाण अभाग।

अपणो जाण अभाग, गजब नहिं खाय गधेड़ो।

शूकर भूंडी समज, निपट निकळै नहिं नेड़ो।

बुरा पशू बच जाय, अहरनिस खाय आखू।

बडा सोचे री बात, तिका निर खाय तमाखू॥1

पिये तमाखू कापुरस, सापुरसां हिय साल।

सालै निस दिन समझणां, चालै चाल कुचाल।

चाल खोटी चलै चूकग्या नर चतुर।

अहह सोचै अति दुवर्यसन दुसह उर।

टुळक आखू अकल घरो घर टीवणां।

पुरस कापुरस जे तमाखू पीवणां॥2

होको लेतां हाथ में चेतो गयो चुळाय।

पड़ै धमाधम पदमणां अधमाधम अकुळाय।

उरड़ अकुळाय आघा पड़ै आय अत।

पड़ावै माजनूं लाजनूं खो अपत।

रीछ लै तमाखू दाम दै रोकड़ा।

हंकड भूंडा लगै हाथ में होकड़ा॥3

स्रोत
  • पोथी : ऊमरदान-ग्रंथावली ,
  • सिरजक : ऊमरदान लालस ,
  • संपादक : शक्तिदान कविया ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रन्थागार, जोधपुर ,
  • संस्करण : तृतीय