संतो सिरजणहार का, भेद जाणै कोय।

घड़ी पलक छिन भीतरै, क्या करही क्या होय।

क्या करही क्या होय, मूढ मत अपनी ठांनै।

अकरण करण दयाल, ताहि गत नाहिं पिछांनै।

सेवग आपा अरप दे, राम करै सो होय।

संतो सिरजणहार का, भेद जांणै कोय॥

स्रोत
  • पोथी : श्री सेवगराम जी महाराज की अनुभव वाणी ,
  • सिरजक : संत सेवगराम जी महाराज ,
  • संपादक : भगवद्दास शास्त्री, अभयराज परमहंस ,
  • प्रकाशक : फतहराम गुरु मूलाराम, अहमदाबाद ,
  • संस्करण : प्रथम
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