संतो सिरजणहार का, भेद न जाणै कोय।
घड़ी पलक छिन भीतरै, क्या करही क्या होय।
क्या करही क्या होय, मूढ मत अपनी ठांनै।
अकरण करण दयाल, ताहि गत नाहिं पिछांनै।
सेवग आपा अरप दे, राम करै सो होय।
संतो सिरजणहार का, भेद न जांणै कोय॥