ठाकुर अकरा रहत है, ठकुराई के जोर।

हाथ कड़ा गळ सांकळां, जमराजा की डोर।

जमराजा की डोर, जेण साहब ना जाण्यो।

अंध धंध मद मांय, परम कूं नाह पिछाण्यो।

कहै दीन दरवेश, झपट लेसी जिम बाकर।

ठकुराई के जोर, रहत अकरा है ठाकर॥

स्रोत
  • पोथी : प्राचीन राजस्थानी साहित्य संग्रह संस्थान दासोड़ी रै संग्रह सूं ,
  • सिरजक : सांईदीन दरवेश
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