रीस दबट्टे राखीजैं, तिण उपजतैं तागि।
पलैं नहीं प्रगटी पछै, उन्हाळै री आगि॥
उन्हाळै री आगि, सही जाये नहीं सहणी।
हुवैं घणी जिण हानि, देह पिण दुखैं दहणी॥
सैंण हुवै सहु सत्तु, फिरै जायै मन फट्टे।
सुणे सैंण धर्मसीख, राखिजै रीस दबट्टे॥