चुगलखोर चुगली करै, नहीं न आवै बाज।
बिन चुगली अन्न पचै नहीं, मिटै न मुंह की खाज॥
मिटै न मुंह की खाज, भिड़ाया बिन भाटा।
लूण मिरच मिलार करै, रसमय चुगली चांटा।
अै कोई का सगा नहीं, मानो ढांडा ढोर।
गुमान कव्है मिनख नहीं, चमचा चुगलखोर॥
कुबधि नुहावो तीरथां, रव्है आपके ढंग।
काळो पाखी कागलो, चढै न ऊजळो रंग॥
चढै न ऊजळो रंग, करै तीन का तेरा।
ना कोई राखो आस, ना तेरा ना मेरा॥
आदत सूं लाचार व्है, लगै न सांकड़ो सुबुधि।
गुमान सलामी दरू सूं, अस्यो जीव ओ कुबधि॥
रूंख पाणी वायु दे, ठंडी देवै छांय।
पाखी बैठै मौज मैं, सांझ सकारै आय॥
सांझ सकारै आय, चुग्गो दे टाबर टोळी।
अन्न फळ पावै मानवी, काटै जनता भोळी॥
घास फूस दे डांगरां, काट्यां भागै न भूख।
रूंख बणाओ भायला, बढ चढ़ लगाओ रूंख॥
राजनीति रोळी हुई, सिर फुटोवल होय।
राज्य जावो भाड़ में, सफळ स्वारथ होय॥
सफळ स्वारथ होय, कियां भी करणो पड़ज्या।
पक्ष बोलै सांच भलाईं, विपक्ष झट ना करज्या॥
हां मैं ना, ना में हां, फकत विपक्ष की नीति॥
गुमान कुर्सी सोनपरी, हथियाणों राजनीति॥