मयमत्ता मेंगळ महा, मणिधरि केहरि मल्ल।

सगळा दमता सोहिला, मन दमणो मुसकल्ल॥

मन दमणो मुसकल्ल, चल्ल जिणरी अति चंचल।

रहैं नहीं थिर दिन राति, अधिक वायैं ध्वज अंचल॥

खिण दिलगीर खुस्याल, तुरत कैं सीळा तत्ता।

कहै धर्मसी मुसकल्ल, मन्न दमणा मयमत्ता॥

स्रोत
  • पोथी : धर्मवर्द्धन ग्रंथावली ,
  • सिरजक : धर्मवर्द्धन ,
  • संपादक : अगरचंद नाहटा ,
  • प्रकाशक : सादूल राजस्थानी रिसर्च इंस्टीट्यूट, बीकानेर (राज.) ,
  • संस्करण : प्रथम