खखा खरतर चालीये, करि खारौ संसार।

मो मन्य मीठो माहवौ, जपीये वारौ वार।

जपीये वारौ वार, हारि बैसो मत भाई।

विसन जपौ रे जीव, ओर धर नांही काई।

मन राखो ठांय, पाप पसरंता पालौ।

विसन जपौ संसारि, खखा खरतर होय चालौ।

हे मनुष्य तुम सावधान होकर चलो और संसार के विषय भोगों को खारा समझो। मीठा तो केवल विष्णु भगवान का नाम है, जिसे बार-बार जपो। अतः विष्णु का जप निरंतर करना चाहिये। हे जीव, विष्णु का जप करो, इसको बिना और कोई धरोहर नहीं है। मन में पाप के विस्तार को निश्चय करके रोकना चाहिये। विष्णु भगवान के नाम का स्मरण करो और सावधान होकर चलो।

स्रोत
  • पोथी : वील्होजी की वाणी ,
  • सिरजक : वील्होजी ,
  • संपादक : कृष्णलाल बिश्नोई ,
  • प्रकाशक : जांभाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : तृतीय