कका क्रिया न छाड़ियै, कुकरम कळह नीवारि।
विसन भगति विण्य आदमी, कुण पहुंतो पारि।
कुण पहुंतौ पारि, कुपह मेल्ह सुपह जे आवौ।
परमानन्द सूं प्रीति करि, नांव निज देखि धीयावै।
सुपह दीखाळै साम्य जी, कुपह राह सब मेटि।
विसन जपौ संसारि, कका क्रिया न मेटि।
कर्त्ता को कार्य की क्रियाशीलता को नहीं छोड़ना चाहिये। इसी से गलत कार्य एवं द्वेष आदि मिटते हैं और फिर विष्णु की भक्ति के अभाव में कौन आदमी पार उतार सकता है। गलत रास्ते को छोड़कर सच्चा रास्ता अपनाये बिना कौन सद्गति प्राप्त करते हैं और कुमति मेटते हैं। अतः विष्णु के नाम का स्मरण करे बिना संसार का क्रियात्मक द्वंद्व नहीं मिटता।