इंछ्या सतगुर पूरवै, जे एक मन्य ध्यायौ होय।

विसन पखौ रे प्राणीयां, अंति बेली कोय।

अंति बेली कोय, जोय सच जेती माया।

नहछै नहीं नीरवाह, अंति पड़िसी काया।

वले विसन सूं काम छै, सुध्य रहेसी सोय।

इंछ्या सतगुर पूरवै, जो एक मन ध्यायौ होय॥

सतगुरु सभी की इच्छा पूर्ण करने वाले हैं, यदि एक मन से उनका ध्यान करें। इसलिये हे प्राणियों, तुम्हें विष्णु का ध्यान बिना विलम्ब के करना चाहिये, क्योंकि अंत में आपका कोई भी दोस्त नहीं होगा। सच ही इस माया को नष्ट करने का मंत्र है। जिसके मन में शांति नहीं वह अंतिम समय में इस शरीर को संकट में डाल देगा। अतः समय रहते हुए विष्णु से मन लगाना चाहिये। उसी से सिद्धी प्राप्ति संभव होगी। इस प्रकार से इस संसार में एक ही गुरु का जो ध्यान करता है, वह उसकी इच्छा की पूर्ति अवश्य ही करता है॥

स्रोत
  • पोथी : वील्होजी की वाणी ,
  • सिरजक : वील्होजी ,
  • संपादक : कृष्णलाल बिश्नोई ,
  • प्रकाशक : जांभाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : तृतीय