हयवर जिण घर हीसतां, गज करता गरजार।
किण हिक दिन तिण घर करैं, पडीया स्याळ पुकार॥
पडीया स्याळ पुकार, वार नहीं सरखी वरतैं।
चढ़त पड़त हिज चलै, चंद जिम बिहु पखि चरतैं॥
चौपड़ केरे चाव, घटत बढ़ती व्है घर घर।
सुणि तिण विध धर्मसीह, हिंसता जिण घर हयवर॥