घघा घर आगै घंघळ घणां, अतं कै गोवळवास।
मडी मंडप कोट गढ़, कूड़ी मंडौ आस।
कूड़ी मंडौ आस, वास थिर मिनख न कोई।
कूड़ी माया जाळ, भरम मत भूलौ कोई।
ऊपरि गजै काळ, ताळ सिर्य सदा उबांगी।
विसन पखौ संसारि, विच घंघळ घर आगी।
इस पद में कहा गया है कि यह संसार अस्थिर है। इसमें अंधकार है और अंत में मृत्युलोक इस संसार का क्रम है। भक्तजनों को चौबारे में, मंडप में, कीले-गढ़ आदि तत्वों में आशा नहीं करनी चाहिये। इनमें आशाएं लगाने से मानव जीवन स्थिर नहीं रहता। यह माया का जाल झूठा है। अतः इसमें आकर्षण नहीं देखना चाहिये। हर प्राणी के सिर पर मृत्यु मंडरा रही है, लेकिन संसार में सृजनकर्त्ता ही उपस्थित रहता है। इसलिये विष्णु का ध्यान करना चाहिये, क्योंकि यह घर नश्वर है।