गगा गरब न कीजिये, धन वित देख्य गिंवार।
विसन नांव गाढौ गही, पावौ मोख द्वार।
पावौ मौख दवार, सार करि क्रीया जांणी।
क्यौ घटि राखौ थूळ, मुरिखा हूंते पांणी।
गुरमुखि परसै हीर, बाझ पारिख कुण बूझै।
विसन जपौ संसारि, गगा गरब न कीजै।
विष्णु का जप एवं संसार को अहं न करने का सन्देश इस पद में है। भक्तजनों को धन को नगण्य समझना चाहिये। विष्णु के नाम को मजबूती से पकड़ने से ही मुक्ति संभव है। इसी में संसार का निष्कर्ष मिलता है। स्थूल शरीर को हृदय में क्यों स्थायी मानकर रखते हो, यह तो पानी के समान परिवर्तनशील (नाशवान) है। गुरु के नाम से मोती आदि की वर्षा होती है और अज्ञान के स्पर्श से अंधकार की। इसलिये ज्ञान रूपी विष्णु के नाम को जपना एवं अहं के नाम को छोड़ना चाहिये।