(1)
थोड़ी जमीं किसान रै, नईं भूख रो थाग
खेतां मांय लगाय ल्यो, खेजड़ल्यां रा बाग
खेजड़ल्यां रा बाग, भेड़ अर पाळो बकरी
भाज जावैली भूख आप री पीढ्यां तक री
निरभै छांगो लूंग, गाय भैंसा नै घालो
करो भूख सूं क्यूं बांथेड़ा, होस संभाळो।
(2)
धरती ‘मुरबो’ अेक पण पीवै बीघा च्यार
इतणै सूं किरसाण री क्यूं कर पड़सी पार
क्यूं कर पड़सी पार, जणा नईं होवै बिरखा
करजै मैं जा डूब, आदमी राजा सिरखा
पाणी, जाओ, भूल, कठै है पाणी भाया?
पीवण नै ई मिल जावै तो खैर मनाया।
(3)
आ मरूधर री लाडली, मरूधर इण रो देस
बिन पाणी ई पांगरै, काची र’वै हमेस
काची र’वै हमेस, लूंग रा थाट लगावै
जिण नै पशुधन, गाय, भैस, बकरी स्सै खावै
खेतां लागै खात, नाज ई निपजै दूणो
बरतो सगळी साल बळीतौ ईं रो सूं’णो।
(4)
खेतां ऊभा खेजड़ा, देखो निजर पसार
लाग्योड़ो ज्यूं हो कोई, चारै रो अम्बार
चारै रो अम्बार, समझ मैं कोनी आवै
पशुधन थारो फेर भूख सूं क्यूं डिडावै
बोलै बो, आगूंच, काळ नै मेह नै रोवै
जद कै खेजड़ला दुरभख मैं दूणा होवै।
(5)
खेत लगाई खेजड़ी लेयर, बीघा पांच
हुई जणा किरसाण रा सुपनां होग्या सांच
सुपना होग्या साच, आमदन होई ईसी
छोरो हो बेकार, लागग्यो जाणै ‘डी.सी’
लकड़ी, लूंग,सांगरी बेची एक साख री
बूझ्यो तो बोल्यो, होगी दोये’क लाख री।
(6)
पसुधन पळसी लूंग सूं, सांगरियां सूं आप
परियावरणी पालना, इण सूं होसी धाप
इण सूं होसी धाप, वन्य प्राणी संरक्षण
श्वेत क्रांति, दे दूध करैलो, थारो पसुधन
छांग छांग खेजड़ा अगर रेवड़ नै नांख्या
धन बरसै'लो, साच्याईं जावेला लाख्या।