एती ओपति सारवै, सरब जीया जूण।

दैत भूलै साम्य जी, सबांही कूं चूण।

सबांही कूं चुण्य, करतब अपणै सारै।

अपणी करणी सार, संता पारि उतारै।

किसन वडौ किरसाण, जुग मंडळ खेती।

विसन जंपौ संसारि, सरब ओपति एति।

विष्णु भगवान ने जितने जीवों को पैदा किये हैं, वे उन सभी जीवों के जीवन का आधार हैं। वे सभी जीवों का पालन-पोषण करते हैं और संतो का उद्धार उनकी करनी के अनुसार करते हैं। कवि का कहना है कि कृष्ण स्वरूप विष्णु ही इस संसार का सबसे बड़ा किसान है और यह सारा संसार उसकी खेती है। इसलिये हमें विष्णु का ही जप करके अपने आपको उद्धार करने के लिये तैयार करना चाहिये।

स्रोत
  • पोथी : वील्होजी की वाणी ,
  • सिरजक : वील्होजी ,
  • संपादक : कृष्णलाल बिश्नोई ,
  • प्रकाशक : जांभाणी साहित्य अकादमी, बीकानेर ,
  • संस्करण : तृतीय