सतगुरु का परताप की, महिमा अगम अपार।

रवि ज्यूं करि परकास, तिमिर सब दूरि गुमाया।

कल्प ब्रिच्छ को रूप, चाहि कोइ रही काया।

दत ज्यूं ग्यान उदार, मिल्या सूं संसै खोई।

दे राम नाम ततसार, दूरि कीनी सब छोई।

जन रामचरण की सरण में, मिटि जाइ जम की मार।

सतगुरु का परताप की महिमा अगम अपार॥

स्रोत
  • पोथी : स्वामी चेतनदास व्यक्ति, वाणी, विचार एवं शिष्य परंपरा (उपदेस को अंग) ,
  • सिरजक : चेतनदास ,
  • संपादक : ब्रजेन्द्रकुमार सिंहल ,
  • प्रकाशक : संत उत्तमराम कोमलराम 'चेतनावत' रामद्वारा इंद्रगढ़, (कोटा) राजस्थान ,
  • संस्करण : प्रथम संस्करण
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