बहु आदर सूं बोलियैं, मारु मीठा वैण।
धन विण लागां धर्मसी, सगळा ही व्है सैंण॥
सगळा ही व्है सैंण, वैंण अमृत वदीजैं।
आदर दीजे अधिक, कदे मनि गर्व न कीजैं॥
इणा वातै आपणा, सैंण हुइ सोभ वदै सहु।
मानैं निसचै मीत, बोल मीठो गुण छै बहु॥