अहं ब्रह्म अस्मी अडग यामें द्वेत आन,

आद अंत मद्य एक रस गणवे सही गुमान,

गुमानो गणे यों एक सच दोय क्यों,

संख तक जायने संखवत होय क्यों,

सुणे वो गुणे वो लखे सो एक है,

अह ब्रह्म अस्सी कहै सो नेक है॥

स्रोत
  • पोथी : गुमान ग्रंथावली ,
  • सिरजक : ठाकुर गुमानसिंह ,
  • संपादक : देव कोठारी ,
  • प्रकाशक : साहित्य संस्थान, राजस्थान विद्यापीठ, उदयपुर। ,
  • संस्करण : प्रथम