छोर्‌यां भाटो मानता, छोरां होतो सार।

छोर्‌यां तकड़ी हो रही, छोरां राख्या लार॥

छोरां राख्या लार, पूंचगी चांद तकात।

बारै निकळी सिंघणी, रही नहीं घरां तक॥

दिन दिन ऊचों नाम करै, छोरा चमक खोर्‌या।

छोड़ो बातां लारली, मान बढ़ाओ छोर्‌‌‌‌या॥

प्रगति कैर्‌या हो रही, पूंच्यो मानव चांद।

नदी नाळा की बात के, बांध्या समदां बांध॥

बांध्या समदां बांध, खोदली सारी धरती।

कद परवा परयावरण, धरती धूजै डरती॥

कठै सूको कठै बाढ़, बापड़ी घायन प्रकृती।

आपदा ऊपर आपदा, कैर्‌या होरी प्रगति॥

स्रोत
  • पोथी : सुणल्यो बोलै सोनचिड़ी ,
  • सिरजक : गुमानसिंह शेखावत ,
  • प्रकाशक : उदय प्रकाशन, धमोरा, झुंझुनूं
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