आयो जीवड़ो जगत मां, जमली औदरि वैस्य।
कोळ कीयो करतार सूं, रह्यौ मुकर होय बैस्य।
रह्यौ मुकर होय बैस्य, मन माया सूं लायौ।
जां जां कीयो मोह, तहां तहां आप ठगायौ।
मन मां चितवन न करै, साम्य हूं किण्य उपायौ।
विसन जपौ संसारि, जीवड़ा जग में आयो॥
जब जीव पेट में रहकर इस जगत में प्रवेश करता है तभी से ब्रह्म से रूठकर बैठ जाता है अर्थात् उसका ध्यान नहीं करता है। ऐसी स्थिति में वह माया से प्रेम करता हैं। जहां-जहां माया से प्रेम किया, वह अवश्य ही ठगा गया है। वह परमात्मा का ध्यान नहीं करता लेकिन संकट आते ही उसे याद करता है। विल्होजी का कहना है कि हमें समय रहते हुए ही विष्णु का जप करना चाहिये।