ढाढी जे प्रीतम मिलइ, यूँ कहि दाखवियाह।

पंजर नहिं छइ प्रांणियउ, थाँ दिस झळ रहियाह॥

पंथि, एक संदेसड़उ भल माणस नइ भख्ख।

आतम तुझ पासइ अछइ, ओळग रूड़ा रख्ख॥

ढाढी, जे राज्यँद मिलइ, यूँ दाखविया जाइ।

जोबण हस्ती मद चढ्यउ, अंकुस लइ घरि आइ॥

ढाढी, जे साहिब मिलइ, यू दाखविया जाइ।

आँख्याँ सीप विकासियाँ, स्वाति बरसउ आइ॥

ढाढी, एक सँदेसड़उ, कहि ढोला समझाइ।

जोवण आँबउ फलि राह्यउ साख खाअउ आइ॥

ढाढी, जड़ प्रीतम मिलइ, यूँ दाखविया जाइ।

जोबण छत्र उपाड़ियउ, राज बइसउ काइ॥

ढाढी, जइ साहिब मिलइ, यूँ दाखविया जाइ।

जोबण कमळ विकासियउ भमर बइसइ आइ॥

ढाढी, एक सँदेसड़उ, ढोलइ लगि लइ जाइ।

जोबन चाँपउ मउरियउ, कळी चुट्टइ आइ॥

ढाढी, एक सँदेसड़उ, ढोलइ लगि लइ जाइ।

कण पाकर करसण हुअउ, भोग लियउ घरि आइ॥

ढाढी, एक सँदेसड़उ, ढोलइ लगि लइ जाइ।

जोबण फट्टि तलावड़ी, पाळि बंधउ काँइ॥

पंथी, एक सँदेसड़उ, लग ढोलउ पैहचाइ।

विरह महादव जागियउ, अगिन बुझावउ आइ॥

पही, भमंता जइ मिलइ, तउ प्री आखे भाय।

जोबण बंधन तोड़इ, बंधण घातउ आय॥

पंथी, एक सँदेसड़उ, लग ढोलइ पैहचाइ।

निकसी वेणी सापणी, स्वात वरसउ आइ॥

पंथी, एक सँदेसड़उ लग ढोलइ पैहचाइ।

तन मन उत्तर बाळियड दख्खण वाजइ आइ॥

पंथी, एक सँदेसड़इ, लग ढोलइ पैहच्याइ।

विरह महाविस तन वसइ, ओखद दियइ आइ॥

स्रोत
  • पोथी : ढोला मारू रा दूहा ,
  • सिरजक : कवि कल्लोल ,
  • संपादक : रामसिंह, सूर्यकरण पारीक, नरोत्तमदास स्वामी ,
  • प्रकाशक : राजस्थानी ग्रंथागार, जोधपुर
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