भंवरा अठ मत आइजै, अे कांटा का बाग।
उड़तां फाटै पांखड़ा, बैठ्यां मारै काग॥
गोडां आयी बाजरी, गिरयां आयो ग्वार।
थे नीं आया बालमा सूनो सब सिणगार॥
टैम गियां पूंछै नहीं, कोई नैणा नीर।
मरगा ज्यां रा बादशा, रोंता फिरै वज़ीर॥
आबै अड़ता रूंखड़ा, पवन छटकता पान।
जठ देखूं बठ ओपतो, कण-कण राजस्थान॥
पीवण नै पाणी नहीं, खावण धोळो धान।
फिर भी कित्तो जोरको, म्हारो राजस्थान॥
पीड़ काळजै पाळ कर, खींचो खूब लगाम।
देर जपण में नीं लगै, गोविंद भी हरि नाम॥
दिन में सूना डांगरा, रातां घालै रास।
बै बैल्या हळ नीं जुते, करो मोकळी आस॥
पंगत बुलाकर पावणा, मन में राखी आंट।
खेंचत-खेंचत पड़ गयी, गठबंधन में गांठ॥
कुण लिख्या, कुण बांचसी, करैला कुण बखाण।
करम किसानी रूंखड़ो, काती पड़ै पिछाण॥
रस्तां पर रौळा करै, ठग, ठाला, धनवान।
गात्यां चिपगा गालड़ा, बो ही असल किसान॥
मायड़ भासा आपणी ज्यूं होठां बिच पान।
जिबड़ल्यां इमरत भरै सुण्यां सरिजै कान॥