रात हाथ छाती पर आयां, कांमण खुलजा आंखड़ली।

बीती बातां मनड़ै उळझै, रोवै आखी रातड़ली॥

आंसू नाखै डुसका खावै, बैठी मूमल टीबड़ली।

गाभलिया कांटा सूं फाट्या, लीरयां लटकै चूंदड़ली॥

मूमल ऊभी बाटां जोवै, भंवर दिखै नीं आंखड़ली।

मेड़ी चढ चढ झांका घालै, कर-कर ऊंची अेडड़ली॥

मारू गया नीं बावड्या' है, जुग बीत्या दिन रातड़ली।

किण जलमा रौ वैर काढियो, कहता जाता बातड़ली॥

रिधरोही रै बीचां ऊभी, छोडी छिटकी गोरड़ली।

रूख बांठका बीचां भटकै, ठोकर खाती मूमलड़ी॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम