सांझ पड़यां पांणी भरबा नै, हिल-मिळ चालै कांमणली।

घड़ियौ माथै छम-छम चालै, गीत उगेरै साथड़ली॥

साठ पुरस रौ कुवौ खोदियौ, दूर नाखदी माटड़ली।

ऊंडै तळ मे पांणी दीसै, पीवै सगळी गांवड़ली॥

ऊंट बळधिया बारो खींचे, पांणी बेवै चाठड़ली।

खाली घड़िया भरै घड़ोई, भरती दीसे कूंडडली॥

सुणता पांण कीलियौ हेलौ, पड़ती दीसै लावड़ली।

गरणाटै पर चढ्यौ भूंणियौ, सारण उड़जा रेतड़ली॥

खाल भैंसरा साळू भेळा, लाव गूंथलै साथड़ली।

भरयौ बारियौ खीच्यां लावै, हळवे हळवे सांढड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम