नृप, वयरी वाघा तणउ, जे विश्वास करंत।
ते नर कच्चा जाणिए— आलिम एम कहंत॥
वयरी विसहर व्याध वघ, ग्रासी गढपति राउ।
छल-बलि गृहिए दाउ धरि, लग्गइ कोइ न पाउ॥
तइं महिमांनी हम करी, अब तूं हम महिमान।
पदमिणि देइ करि छूटस्यउ, रतनसेन राजान॥