रात सुहांणी तारा चिलकै, इमरत न्हाखै चानणली।

धोरलियां रै माथै गूंजै, मधरी-मधरी बांसड़ली॥

धोरा धरती साफ सुथरी, कीच दिखै नीं आंखड़ली।

ओबर - गोबर स्सैं कीं सूक्यौ, सूकी दीसै बाखळड़ी॥

तावड़ियै मै माछर मरजा, माखी मरजा लूवड़ली।

सोवण संख बजावण ढूकै, मीठी लेतौ नींदड़ली॥

चानणली रातां मै रमलै, गबरू ऊंची टीबड़ली।

ईलौ-गिलौ दीसै सुकतौ, गरम पसीनौ खाखड़ली॥

लू-लपटां सूं मिटै बिमारी, रोग दिखै नीं गांवड़ली।

हसी खुसी टाबरियां रमलै, घर-घर जामण गोदड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम