जूनी बातां सुणै गांवरा, बैठ्या ऊपर टीबड़ली।

रात पड़यां सूं भैळे बैठ्या, दै हुंकारा धाकड़ली॥

पांच पंचांरौ कहयौ करणौ, मूंडै बोली साचड़ली।

परिहार तनै बात बताई, टकौ राख दै हाथड़ली॥

घणै टाबरां दुःखड़ौ पासी, रोतां कटसी रातड़ली।

थोड़ै टाबरां सुख सूं रहसी, हिवड़ै राखी बातड़ली॥

पढणौ लिखणौ मत भूली थूं, हिरदै राखी बातड़ली।

ठगोरां सूं कदै नीं ठगसी, रोकड़ रहसी आंटड़ली॥

रूंख बाढणौ पाप लागसी, मिट जावेली छांवड़ली।

काळ-दुकाळ आय घेरसी, नीं बरसेली बादळड़ी॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम