रघुनाथगढ रा भाटा भाइ, चम चम चमकै धाकड़ली।

पणौ बणाती दिखै लुगायां, मधरी गाती गीतड़ली॥

गणेस चौथ नै लाडू बांटै, गुरू बांधलै पागड़ली।

गुरवाणी चूंदड़ नै ओढै, गांव घरां री रीतड़ली॥

झगर-मगर फेरणियां चालै, भाक फाटियां गांवड़ली।

मधरी-मधरी पून बीच मै, घणी सुहावै तानड़ली॥

सेखाणै मै रम्मत घालता, सांग रचावै धाकड़ली।

अमरसिंघ, जगदेव कंकाळी, सगळी देखै गांवड़ली॥

ढुल्लौ मीठौ गातौ दीसै ऊंची खीचै तानड़ली।

आठ कोसां रै आंतरै सूं, सुणलै भाई बोलड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम