हथणी जिसड़ी दिखै चालती, मरूधरा री गोरड़ली।

घेर घुमेरां पहर घाघरौ, गजबण पूगै सैजड़ली॥

झींणा गाभा कांमण पहरया, पीव मिलण री रातड़ली।

चांद पुनमरी रातड़ली मै, झांकै अंग-अंग गोरड़ली॥

दिनड़ौ ऊग्यां पूछै ताछै, घरां लुगायां बातड़ली।

सरम लाजड़ी घणी सतावै, माथौ टेक्यो गोडड़ली॥

साथी थारी बातड़ली मैं, किण विद रीझी भावजड़ी।

मुळक - मुळक भाईड़ौ कहवै, राता बीती बातड़ली॥

रातड़ली री बातड़ली मै, मनड़ो उळझै गोरड़ली।

नाचे कूदै हसी - खुसी मै, करें मस्करी साथड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम