दुहा

जोड़े दुंद अनेक यां, दोड़े तहवरखांन।
मुरधर प्रजा भँगेळियां, किया गिरंदे थांन॥

रूपौ कुंभकरन्न रौ, कुंडाद्रह कमधज्ज।
रहै गुढां कर सद्धरौ, ऊदाहरौ सकज्ज॥

फौज तहव्वर खांन री, आवी ऊगे सूर।
वखत वणी रिण सद्धरां, नरां खरां मुख नूर॥

छंद सारसी

आवी अलेखे फौज ईखे रीत लेखं रूपसी।
ऊठियौ अग्गै आभ लग्गै अकस जंगे ऊपसी॥
हुय रौद्र हक्कं ग्रेह लक्कं जै किलक्कं जोगणी।
वंका गरज्जे खड़ग वज्जे सक्ति रज्जे सक्कणी॥

वीतां अधूरां वार पूरां वेध सूरां वच्चए।
सेले प्रहारं धार सारं मार मारं मच्चर॥
वग्गा खड़ग्गे दुहूँ वग्गे काळरंगे वीरयं।
अछरां उमंगे दूर अंगे चाव रंगे चीरयं॥

उर कोप आंणे अप्रमांणे सिद्ध जांणे सद्दयं।
ओपै अखाड़ै गै उडाड़ै रूक झाड़ै रद्दयं॥
हरि गयण रत्थं ताण हत्थं वाधि कत्थं वेणियं।
वाजे सचाळौ कुंभवाळौ रक्खवाळौ रैणयं॥

दुहा

घड़ उब्भै घड़ियाल ज्यूं, घट घट वग्गा घाव।
रज रज हुयगौ रूपसी, सुजड़ा कुंभ सुजाव॥

आद विखै ऊदाहरौ, दळ आयां पतसाह।
रिण लड़ पड़ियौ रूपसी, सुणियौ अवरँग साह॥

छत्री सौ आसोज सुद, सतरै सँमत वखांण।
कूंडाद्रह लड़िया कमँध, असपत्तो सूँ आंण॥

असुर पड़े रिण आंगणै, आठ अनै अठत्रीस।
धनै नरै केहर जिसा, पड़िया अठी पचीस॥

स्रोत
  • पोथी : राज रूपक ,
  • सिरजक : वीरभाण रतनू ,
  • संपादक : रामकर्ण असोपा ,
  • प्रकाशक : नागरी प्रचारिणी सभा, काशी ,
  • संस्करण : प्रथम