दुहा

रांणी श्री जसराज री, कमँध निबाहण कज्ज।
अत सोचे आलौजतां, वारे मात वरज्ज॥

थां महारांणी उच्चरै, सुहड़ां तजौ सचींत।
परवाहौ खग धारदे, जमणा धार प्रवीत॥

धन्य कह्यौ सब ऊमरां, साहँस देख प्रचंड।
हुवा सुरंगा बांण सुण, भुज लागा ब्रहमंड॥

दौळी चौकी साह री, विच दळ अकळ सभाग।
सोहै किर सामुद्र मैं, ज्वाळवती बड़वाग॥

पिड़ जुडवा भड़ पांच सौ, रहिया अडिग अरेस।
कमँध सजूझा कांम छळ, दूजा आया देस॥

एती एक न आदरी, जेती अक्खी साह।
कमधज्जां नव काट रां, औट लियौ व्रत चाह॥

लोपै नियती ची म्रजा, कोपे अवरँग साह।
पड़ी तुरंगे पक्खरां, अंगे जड़ी सनाह॥

छंद अर्धभुजंगी

सनाहे असली, हिलै फौज हल्लां।
लड़ंगे अलेखै, दिली ख्याल देखै॥

चढ़ै लोक चल्लै, मखीतां महल्लै।
झरोखो सझयौ, उठी साह आयौ॥

चली फौज चावै, हुवौ लोक हावै।
अठी अै अछाया, उठी खैंप आया॥

नगारा निहस्सै, सनूरा तरस्सै।
दुसेन्या दरस्सी, कड़े कंठळी सी॥

दुहा

धिन आजूणौ दीहड़ौ, यां कहियौ रघुनाथ।
धरम निभाहां साँम छळ, साहां सूं भाराथ॥

फेरे वग्ग तुरंग री, तोले खग्ग करग्ग।
रिण पण ऊमंगे लगे, रैणायर गयणंग॥

महारांणी जसराज री, यां बोली तिण वार।
प्रथम अमां परवाहियै, खग धारा जळ धार॥

खग्गां सीस निवेड़िया, साहँस परख अथाह।
जोधहरां मिळ जमण मैं, कीधौ मात प्रवाह॥

भाज गई चिंता भड़ां, घड़ां कठंट्ठे जंग।
नांमा रक्खण देख खळ, सांम्हा किया तुरंग॥

पत्र सुधारै जोगणी, माळ सुधारै रंभ।
थंभ चलेवौ सोम रवि, पेखे व्योम अचंभ॥

स्रोत
  • पोथी : राज रूपक ,
  • सिरजक : वीरभाण रतनू ,
  • संपादक : रामकर्ण असोपा ,
  • प्रकाशक : नागरी प्रचारिणी सभा, काशी ,
  • संस्करण : प्रथम