साबणि सरवणि कडुयं मेहु,
गज्जइ विरहि रि झिज्जइ देहु।
विज्जु झबक्कइ रक्खसि जेम,
नेमिहि विणु सहि सहियइ केम॥
सखी भणइ, सामिणी म म झूरि,
दुज्जण तणा न वंछित पूरि।
गयउ नेमि तउ विणठउ काइं,
अछइ अनेरा वरह सयाइं॥
बोलइ राजल तउ इहु बयणु,
नत्थी नेमि समं वर-रयणु।
धरइ तेजु गहगणि सवि ताव,
गयणि न उग्गइ दिणयरु जाव॥
भाद्रवि भरिया सर पिक्खेवि,
सकरुण रोअइ राजल देवि।
हा एकलडी मइं निरधार,
किम ऊवेखिसि करुणा सार॥
भणइ सखी, राजल म म रोइ,
नीठुरु नेमि न अप्पणु होइ।
सिंचिय तरुवर परिवलवंति,
गिरिवर पुण कड्डेरा हुंति॥
साचउं सखि, वर गिरि भिज्जंति,
किमइ न भिज्जइ सामळ कंति।
घण वरिसंतइ सर फुट्टंति,
सायरु पुण घणु ओहडु लिंति॥
आसो मासइ अंसु-प्रवाह,
राजल मेल्हइ विणु नेमिनाह।
दहइ चंदु चंदण हिम सीउ,
विणु भत्तारह सउ विवरीउ॥
सखि नवि खीना नेमिहि रेसि,
म म आपणपउं सउं खय नेसि।
जिणि दिक्खाडिउ पहिलउ छेहु,
न गणिउ अट्ठ-भवंतर नेहु॥
नेमि दयालू सखि निरदोसु,
किजइ उग्रसिण ऊपरि रोसु।
पसुय भराविउ मूकउ वाडु,
मुझ प्रिय सरिसउ कियउ विहाडु॥
कत्तिग कत्तिग ऊगइ संझ,
रजिमति जिज्झिउ हुइ अति झंझ।
राति-दिवसु अच्छइ विलवंत,
वळि वळि दय करि, दय करि कंत॥
नेमि तणी सखि, मूकि न आस,
कायरु भग्गउ सो घर-वास।
इमइ इसी संनेहल नारि,
जाइ कोई छंडवि गिरिनारि॥
कायरु किम सखि, नेमि जिणिंदु,
जिणि रिणि जित्तउ लक्ख नरिन्दु।
फुरइ सास जा अग्गळि नास,
ताव न मेल्हउं नेमिहि आस॥