चोपई

रतनसेन कहि सुणि परधांन, वातां करतां वाधइ वांन।

पिणि जु प्रांण दिखाडइ भूप, तु नवि कोई रहइ रस रूप॥

वात करइ जु आलिमसाह, तु हम मिलवा घणु उछाह।

असपति आवइ अंगणि वही, प्रापति विण क्युं पामां सही॥

बोलबंध द्यइ साचा साहि, अलप सेन सुं आवई माहि।

अम्ह घरि आइ अरोगु धांन, माहोमाहि वधइ ज्युं मांन॥

परधांने पूछिउ पतिसाह, वात वणे दीधी निज बाह।

आलिम सुंस करइ सहि जूठ, मुंहि मीठो मन माहे दूठ॥

स्रोत
  • पोथी : गोरा बादल पदमिणी चउपई ,
  • सिरजक : हेमरतन सूरि ,
  • संपादक : मुनि जिनविजय ,
  • प्रकाशक : राजस्थान राज्य प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (राज.) ,
  • संस्करण : तृतीय
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