सोनै जिसड़ा धोरा चमकै, मखमल जैड़ी रेतड़ली।

बुढा-बडेरा रळ-मिळ बैठे, भली विचारै बातड़ली॥

भाई चारौ बस्यौ मनां मै, थळी देस री धरतड़ली।

ओक दुजैरै दुःख दरदा मै, भाजै आधी रातड़ली॥

घर-घर दीसै हेत मोकळौ, हिळ-मिळ रहवै साथड़ली।

जात-पांत नै भूली बिसरी, बैठी गावै गीतड़ली॥

गांवां रीता घणी सांतरी, चाले अेकल डोरड़ली।

घरां गांव ने बाध्यां चाल, हस हस करता बातड़ली॥

आब हवा रै तणा दिखै है, गबरू ऊभौ टीबड़ली।

बाजरियै रा सौगर जीमै, चूरयां घीव साकरड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम