बारह मास वरणन मांय
आषाढ़
(राग बिलावल)
आशाड़ो घर उनाल्यो। बाजे छे घन घोर।
ज्योत चमुके दामनी। सोहामल से मोर॥
पपैया पेड़ पेड़ करे। तल तल दाजे देह।
साम विजोगे व्रेह एपनो। घन बाधे अति नेह॥
दादुर बोले दमदमा। वरखा अमृत बूंद।
तड़ तड़ तड़ फटिक हुयो। फरेरी फुरे फूंद॥
नयन कमल वरूक्ष भया। कब मले निज नाथ।
अंगों अंग कब भेरवो। प्रेमज भरी बात॥
पिड़ विन नथ नाके थकी। आस्या कर रे अपार।
करण फूल जल लड़े। कब मलेसे भरतार॥
कंठी गला में गड़ रही। मोती आंवली माल।
कब हो मले मोए सामजी। सउ दर के ब्रज लाल॥
व्याकुल व्याकुल बलखी भई। सेज मेरू समान।
कब मले निकलंक घर धणी। व्रेह मेटावे काम॥
ब्रेह बुजावो कामनी। भवनी रा भरतार।
वेगे पधारो दाल्यामां। कहे राधा नार॥
आसाड़े मासे एन्द्र गाजे। तेम तेम ते ब्रह्म गाजे।
आवी साम के अंगना। पूरो आस विजोगे॥
सावन
(राग गौड़ी)
हे कोलड़ो रे सखी आयो सावन मास।
पावस प्रित वरखा घणी रे। वृक्ष पत्रम मरत बोत।
तेम तेम प्रितम सामल रे। सुरत संसल इन्द्र॥
मोहन तारी मोरली। घणी सुन्य कर्ण माहे।
नेन्द्रा ने आवे सामजी रे। मलवां करो क्यु ने हे॥
विलापे उबी जोग अरे। अहो वीछे करूं रे आस।
सेजलड़ी वेरेण भइ रे। पुरो हमारी आस॥
साम वियोग गेहरो घणो रे। कोथीक कह्यो न जाए।
संत की जाणे साहेब रे। के दुख सहे मन माए॥
नीर बिना हुके मेदनी रे। सुंदर वेहणी साम।
रक्षा करो निज विट्ठला रे। पुरो मन की आस॥
जीवन आवो ज्युग पति रे। पुराण परमानंद।
ब्रेहं का दुख मेटावो रे। व्रत अक्षय आनंद॥
हर विरहणी विलाप वरणे। धरे दुःख अपार अनंत।
आवो विरह संताप मेटो। मारे सेज माहे मेरो नंद॥
भादों
(राग मोला मलार)
भादरवो भेरे गाजीयो। अेन्द्र करे आवाज जी।
अनाहद वाजे दखली। तेम लागे दाज जी॥
प्राण पुरस सुं प्रितडी। मोहन बांध्यो मोह जी।
व्याकोल व्याकोल होए घणो। शीत सुध उपजे सोह जी॥
बादलड़ी झड़ मांडियो। सेह्य दसा समके बीज जी।
घनघोर रजनी घुरमली। दहे साम विजोग अती जी॥
मोरल वेट हुका करे। दादुर बोले दूर जी।
व्रेह अंगी भीग लग रही। आवी बुजावो कोर जी॥
कीजो कारण का होजी। मोहा वीना मावजी।
सारो भव अकारथ जाए जी। साम मल्या सुख उपजे जी॥
नेद्रा विना सपनो नेहे। सपनो पामी ने पुरो आस जी।
पेउ पेउ पोकारत पामरी। प्रित पाली हुयी देह जी॥
दिन-रात दिल में रहे। सूरत में रम्यी या महाव जी।
काया माया कहुं अजे नहे। भरथार पतिव्रता भावे जी॥
मन माहे वसे रोजड़ी। तेम किकम मान जी।
भादरवो भेरे गाजियो। प्रेम करो तो मार संग जी॥
नीज नाथ मंदिर वेगा आवो। मुज व्रेहणी दावो मेटवो।
अरस-परस ध्ये संगो अंग भावो। करो कंद्रप कामनी दूर दापो॥
आसोज
(राग सोरठ देसी)
आसोज आयो रे अनुरद शीश भ्यो।
पाकी पाकी साल ने ओमाल रे॥
ज्यौवन पाकी ब्रेहमद सुंदरी कोटी रे।
कंद्रप करे से आल रे करसण पाको रे॥
मन संता मटेना लगा रे। रोम-रोम दुःख मोहन प्रितड़ी रे।
शीत सूरत ना भूले ना रे, अेक न कीजे पूरण परमात्य रे॥
कीजे अबला तणी प्रतिपाल रे, पोताना जाणी रे पधारीए।
काम कंद्रप मेटावो काल रे, कालजे अंगी ठोर ब्रेह जी ए॥
दीपक परगट्या जी सारे, ज्युग भवो जे जे कार रे।
प्रजा समरथी विधसारी कलाजी, घेरे आवो देन दयाल रे॥
मारे पधारो ब्रजपति विट्ठलाजी, दूती जाशी सुणावो सामरे।
वेगे करी ब्रेह दुःख मेटवो, मारो कंद्रप दवादल काम रे॥
नुर सकल बीज ना हालो जी, ज्जांरी महीमा जग थाए रे।
नथी हवातु रंग सामजी, व्याकुल व्याकुल शीत जाए रे॥
आसौजा गया सजन मल्या न्हे, मारो जनम जीवन जाए रे।
करो कामनी भामनी वाट स्वामी, बिना बंध ने बधावो जी ॥
कार्तिक
(राग वराग की देसी)
कार्तिक आयो कमला पति। शीत सीआलो पेहलुवी मारू रे।
मंदिर पधारो मही पति रे। आवी अबला नी पुरो आस रे॥
सेजडियां सोवाली यारो। कुउ अेकली के मासा परे।
ब्रेहे विजोग दुःख उपजे रे। घणे कंद्रप पीड़े काम रे॥
रजनी में प्रितम सांभले रे। खेनु खेनु ज होए खांत रे।
साम मल्या बिना खांत मे रे। भागे भागे केशी विध भ्रांत रे॥
जोविन हाथी मद वहे रे। घणे उनमत साले उतंग रे।
महावत बिना ना मल्या महावजी रे। दई अंक सराखे रंग रे॥
लगन लगी मन ले घणी रे, घणी पेउ जितणी नीज्य पास रे।
मोहांन न मल्ये सुख उपजे रे। हरी हइडे ज होए हास रे॥
मान राखो मुज माननी रे। सारी ब्रज सुंदर लाज रे।
सांम वंदी सखे सुंदरी रो। पधार छे माहरे घेर रे॥
तरी आ नो तो वधारी ऐरे करी। करण ने राखो लाज रे।
साम मिलने मेरी अंखी आं रे। प्रित उपजावे प्यास रे॥
रोम रोम दुःख उपेजे रे। विना साम कुण पुरे आस रे।
आयो कार्तिक मास सामी सधावो। घणे प्रेम सुंभामनी मन भावो॥
मार्गशीर्ष
(राग मलार गोड़ी देशी)
मागसर आव्यो महीमा घणी। वाला लागो सो साम।
नाथ वीना केम जीवाए। आमां आवेना हाम॥
प्राणनाथ बिना प्राणी ने। कुण करे रे संभाल।
महीमा सोभे मस्तके। भक्त नी प्रिती पाल॥
जेणे जगत सब था पीयो रे। सर ज्यो सब कोए।
तेण वेना कुण तार से। जेणे स्मज्या सेह लोके॥
दुःखी आले दुःख कुण नीरामे। भरथार वीना भार।
पलंग पधारो प्रितमा रे। अबलां ना आधार॥
पूरव जनम की रे प्रितड़ी। बालपण नो बोल।
घणी जीमी ना कुण धार छे। राख छे कुण तोल॥
मागसर मास नी मानानी। मेंग घणी होवे।
भोगवी जाणे भोगीयो रे। ओरां मालां मना कोए॥
अंत मेटो अनंत। अमरत रस पावो।
मोज राधा की वेनती। मानी मोहन आवो॥
तरण तारण तंत हो। नीज नीज मन नाथ।
तन मन नाखू से वर्णो, दोनु जोड़ी हाथ॥
पतिव्रता पणो नीज सामनो। राक्षा थकी रेछ।
अबला नु बल कांए नथी। जेबड़ा सोते से सोस॥
नीकलांकी नीज अंगना। राधे नुज नाम।
गोकुल मथुरां मां खेलिआं। केम विस्यारो साम॥
आलस दुःख अलगां करो। अंग आनंद दीजे।
सुख सु पधारो सेजड़ी रे। आली घन रे दीजे॥
मेहेल गेल नरखु घणी। कब मले भरथार।
मल्या वीना केम जीवणं। व्रेह वीतां सुधार॥
पौष
(राग देव गांधार)
पौषज मास नी प्रीतड़ी रे। विज्योन दुःख छे भारी रे।
सेहेज मले साम वेहणी। अेक लड़ी सेनारी रे॥
शीतप काल में सामीज मेला। आनंद ओसव लाले रे।
कंद्रप कोए काम आतुर बुजे। भव भव भ्रांत ज भागे रे॥
साम की सोभा अमरत सु प्यारी। प्रेम कटोरी पीजे रे।
भार भागे भव भव के री। तन मन संप कीजे रे॥
हास-विनोद होए अति प्यारो। पेउ जी साज्यु में मलीए रे।
सुख संजोग कीजे विठला सुं। दुःख दावानल टलीए रे।
जप तप कारण सकंम धासी। तन मन सोही दाजे रे।
साहे करी सो साम हमारी। सोभा सड़से तुमारी रे॥
मम माहात्मा भगत आरती। जोत सं जोती दीजे रे।
अंग रंग अेकज बाथ भरीजे। झटपट बाधु वराजे रे॥
प्रभु पौस मासे तमे पीर पालो। आवी अंगनां अंग उतारालो
बेह उलवो अमरत धार लावो। कामनी कंद्रप धरे घालो॥
माघ
(राग श्री राग)
माघे पधारो रे मनोहर महाव जी। सीत अमरत मुख नुरको।
वरखे से अमी अमसाल व्रेह। संतापे रे वेरेण रातड़ली जी॥
सीत काल मेढ़ी सेजड़ली। घणी वाली लागे साड़े।
प्रीतम बीना दुख उपजे। घेरै साम नहे सर माड़े॥
जल वीना कमल साजे नहे। हरी जेशो जल वीना मीन।
साम बीना केसी सुंदरी। शीत सुख पावे ना वीन॥
अल वेल्या पधारो आंगणे। हूं तो तन मन वारूं प्राण।
तन मन लेवु सुख भामण। करूं सुरत करवण॥
रात्य दिवस सुरत है साम सुं। तलफ तलफ त्रुटे प्राण।
नेद्रा आवेरे नेत्र उजागरे। नीत नेह लाशो नीरवाण॥
अंग फरुके रे सीतरी जेन्ही। मन मलबा हरी थाए।
दरसण बीना रे दल न्हे सोजतु। सारो जीवन लगे मश्यत॥
प्रभु माघ माछे व्रेह मद वाप्पो। करे कंद्रप पीड़ा अती संतापे।
आवी आपने मुने प्रेम पावो। देह दुःख विजोग सारो मेटावो॥
फागण
(राग वसंत फगुवा)
आयो फागण मास सखी साम ना आया।
वसंत व्रेह कु बोहत संतापे। कंद्रप होरे वारी।
कंद्रप पीड़े काए। वनासपती सखे सारी फूली॥
कली हाऐ भारू अंन मग। अंवा मोर्या महुवन आया।
केज्यु हेरी हरी। केसु सो रंग आया॥
सबल साहम गरी त्यारी रे कीधी। केसर वो होत घोलाए
फागुण खेलत फुगुवा लीजे। बहे पकड़ती भराए॥
साम वीजोगे व्रेह बोहोत संतापे। आये मलो स्वामी करे सार रे।
कहेत राधा सखी रंग भर खेल्यु। मनोहर खेल खेलाए॥
फागण मास वसंत आया। आओ कामनी को कंद्रप कापो।
व्रेहणी वेदान वेरी संतापे। प्रभु आप वीना कुंण हूं आपो॥
चैत्र
(राग कालामो देश)
चैत्र सधावो रे मोहन म्हारे। आप बिना अब कुण जीवावे।
नव रंग नव जोस उजारे। आद सरीत्र नुं मारा छे आदे॥
उत्सव मंगल आपकी सोभा। धारण लाल नारी धारे।
लामान लीला मोह केंद्रप पीड़ा। जोवन लाल जोबन सारे॥
अगम करत आप में खेले। नीज मनहे मन साम संभारे।
व्रेह नी पीड़ा ब्रेहीज जाणें। अवर हे लाल कहो कुंण धारे॥
नीज नाथ अंगना दुख देयो। कुंण सुं हे लाला दोस धरूं।
साम सामो न्हे को औ' दूजो। तहां हे लाला शील व्रत करूं॥
आमारे प्राण तमारे अनेक। अमने हे लाला कुंण संभारे।
व्रेह ग्रहां की लाज देह वी। पीठ जे लाल बांध्यां तुमारे॥
वैशाख
(राग स्मगिरी देसी)
केसु कारण उगह्यां धोरां धार मुज धार रे।
रस रसाली रस रह्या। फुली अफलील अपार रे॥
मांतरी मोरी मोगरा, सेवंतरी सुषमा बहोत।
पामल फलं मेहे कियां, गोलाब फुल्या बहोत॥
सामगरी त्यारी घणीं रे, वाघ वीध पुजा नावरे।
वाट जोए वेनता घणीं, मंदिर पधारो महावरे॥
करण फूल थरकी रह्या, सर सों भीती ली बाहरे।
मांग मोती सर गोफणे, बेण गुथी आसार रे॥
अक्षय रथ अगली कला, जेणे जावण हार सुजाण रे।
तलफ तलफ करी तन तपे, पिया आपते विजोग रे॥
भाव पुराण कसुर भोग रे, अंतर पीड़ा अती घणीं रे।
मोजने नेद्रा नथी ना सुजे घर, अंगना में ना सोहाए रे॥
काएन वर वीना कामनी, जुग जाणु कोटी साम रे।
निकलंक पधारो नीज घणी, मुज राखो अगना मन रे॥
वैसाख मासे प्रभु वन मोर्यो, घणीं जोवती जोवन लेहत्यो।
स्वामी आप पधारी ने सुख दीजे, भला अंग सजो सेहज्यो ॥
जेठ
(राग श्रीराग देसी)
उख उनालो सुरज रवि तपे, तरुणी लागे ताप।
व्रेहदा बादल उमग्यो, सुख सुंदरी लागे संताप॥
ताप तन मेरे ताप दुखे घणे, सुख शीतल करे कुंण काए।
साम बिना रे भूजे कीन्हे, बुजे अंग तर्णी क्युं बलाए॥
प्रेम अनोपम पीड़े प्रीतड़ी, सीत अंतस करण ना सोहाए।
प्रीत बंधाणी पूरव जनम की, नीज अंत भरधारे॥
मन गली नीरमेल भयां, नीज सुरत रही तुम मांए।
हरी अबला नो अंत ना लीजे, कीजे बाहे ग्रहे की लाज॥
विजोगे व्रेह पीउ घणीं, मुज मंदीर पधारो महाराज।
कमला तमारी सुकामनी, नीज स्वामी सदा भरतार॥
प्रभु कर जोड़ी ने कामनी, श्री साम मा घर मा आए।
हवे अंतस करण की आ घड़ी, नथी लांबी दन दौड़ाए॥
वेग पधारो मोहन घर धणीं, पेउ आवी संभालो घरे।
व्रद जाये प्रभुजी आपको, कली में भजन कर छे कोए॥
अंगना हरी की सुंण मुरली, अपनी गति मुगति कहां होए।
प्रीत कैसी परी ब्रह्म की, अेम कहसे सकल संसारे॥
अधिक मास
व्रेह व्याकुल भई सुंदरी, मुज वैराग विलाप।
मलन कीजे मन मानी, मेटो या दुख उताप॥
साम उमेद हरखत भयो, आभुष्याण पेहरो अपार।
गरुडा पलाड्यो प्रीत सुं, आया साम असवार॥
अनाहद वाजी नित नवी, सोसठ राग रसाल।
सर्व लोक अेक सबद में, जे जे साम संभाल॥
नर दृष्टि ऐंदर करी, बरखत पुसवे अनेक।
मंगल सरजी आरती, दीपक सरसे टेक॥
वरमाला राधे ग्रही, सकल पुरूस नीज वास।
सज लिजो संगे लीए, उभा पोल प्रकास॥
गावे गीत रसाऐला, धन धन आपणों भाग।
नारद पधारो साम से, कीजे भलां न साथ॥
सामी साम मन मल्यां, मटीआ अंग उताप।
आनंद वापा व्रेह वध्या, सुटा सोक संताप॥
कर जोड़ी वदकी कथा, सरण कल की आस।
जुग जुगांतर ऐम मल्या, सदा सरणागत पास॥
छतीसे निकलंक जी नी बारमास संपूर्ण
पुत्र दास टुडोर लखे। जे कोई वासे जे कोई सांभले।
जे जे जे।
(संवत् 1889, 4 दीने लख्यु)