रामदेवजी जलम लेवतां, मुळकी धोरा धरतड़ली।

जद भगवन अवतार पधारया, फूलां बरसी पांखड़ली॥

सात दिनां रा हुया रामसा, परचौ दीनौ मावड़ली।

दूध उफणतौ हेटै उतरयौ, जामण देखी आंखड़ली॥

लीलौ घोड़ौ उडै गगन मै, अजमल ऊभा छातड़ली।

दरजी टांगां थर-थर धूजै, ऊभौ जोड़ै हाथड़ली॥

सारथियै री मोत हुयां सूं, घर मै रोवै मावड़ली।

हिंदुवां सूरज हेलौ देतां, खोलै साथी आंखड़ली॥

पांच पीरजी आय बिराज्या, रूणैचै री टीबड़ली।

देख पांवणा भगवन कहवै, जीमौ संतां रोटड़ली॥

स्रोत
  • पोथी : मूंडै बोले रेतड़ली ,
  • सिरजक : सरदारअली परिहार ,
  • प्रकाशक : परिहार प्रकाशन ,
  • संस्करण : प्रथम