कींकर सूरज तव कथूं,पावन पुंज प्रकाश।

आभै माहीं आजलग,पातळ तणो उजास॥

नह छंदां नह गीतड़ां,लेख इळा लिखतांह।

सुजस तिहारौ ऊद सुत,नह मावै कवितांह।

बंध्यौ तू कद बंधणा,पातळ परम प्रताप।

कींकर बांधू हे! पता,छंदा कर संताप॥

ओज ऊमगे देह मझ,कीरत तव कथतांह।

लाल आंख लाली हवै,मुगल नाम सुणतांह॥

हल्दीघाटी हरवळै,खरी रही किरपाण।

हरखै हरदम वाहरू,पृथी तिहारै पाण॥

जुगां जुगां रौ जतन कर,तुरत्त पायौ तोड़।

अकबर नित रौ ओजखै,पूगै कठै पौड़॥

बांचै बिड़दां बंकड़ौ,मूंछां तणी मरोड़।

इळ ऊपर नह वाहरू,हुवै तिहारी होड़॥

वनां सदा सुख संचरै,रखतां धरम धजांह।

जीम घास रोटी जबर,पळकै क्रीत पताह॥

प्रतधारी प्रण पालतां,अवलंब एक आधार।

अड़े अकबरां सूं पतो,सह जाणै संसार॥

चंदा जद तक चमकसी,इळा रहे इतियास।

चहूँ कूटां में फैलसी,पातळ पृथी प्रकाश॥

स्रोत
  • सिरजक : कमल सिंह सुल्ताना ,
  • प्रकाशक : कवि रै हाथां चुणियोड़ी