दोहा

धार उजयनी के अधिप, जिनह वीर वर जान।
कहूं सार आचार कृत, वंश पंवार बखान॥
असुर संहारनखिल अवनि, मुनिवर उपजी मन्न।
किय वशिष्ट तहां क्षत्रि कुल, पुरुष च्यार उत्पन्न॥
चालुक अर चहुवान वर, परमारहु परिहार।
किय वशिष्ट तहां क्षत्रि कुल, सवला पन दत्त सार॥


कवित्त छप्पय

अनल कुंड उत्पन्न पुरुष परमार प्रगट्टिय।
प्रवर पंच तहं प्रगट थिरू वछ गोत्र सुतटि्ठय।
माध्यंदिनि शाखा प्रमाण जाके जग जाहर।
कुलदेवी ताकी कहाय शच्चाय नाम सुर।
जिण कुल अजीत लोभी सुजस सुभट सिद्ध अवसाण रो।
उजवाल विरद परियां इता खाटण सुजस खुमाण रो॥

पल्ल वेणु जिण वंश प्रथू प्रिय व्रत प्रमाणहु।
सुरपति मन्मथ सबल धौम्य पद शक्र सुजानहु।
विनयपाल वरवीर देव पालग जगरक्खहु।
दुनीपाल नरपाल अवनिपति नरियंद अक्खहु।
जिण कुल अजीत लोभी सुभट सिद्ध अवसाण रो।
उजवाल विरद परियां इता खाटण सुजस खुमाण रो॥

नरिंदपाल नरनाह जासु पंचान सु जाहर।
नृप परुय तह निडर थिरू गंगपाल सुथाहर।
रत्नकेत रिमराह काम जित जास अनंकल।
तेजपाल सुत तुंग सुवन गयपाल सु सब्बल।
जिण कुल अजीत लोभी सुभट सिद्ध अवसाण रो।
उजवाल विरद परियां इता खाटण सुजस खुमाण रो॥

राजपाल सुत राम धरम अगंद व्रत धारी।
अखैराज सद मत्त सोम काटन जग सारी
दुनीपाल नरसिंघ सुतन महिपाल सकारण।
विनयपाल वरवीर देव पालग तह दारुण।
जिण कुल अजीत लोभी सुजस सुभट सिद्ध अवसाण रो।
उजवाल विरद परियां इता खाटण सुजस खुमाण रो॥

धमंगिद्द नृप सधर अवनिपति भये वीर अति।
विहद धरण वाराह महीपति भये सुदृढ़ अति।
किए वंट नव कोट अवनि नव भ्रात सु अप्पिय।
दिय अनेक तिह दान करिंद कविजन के कप्पिय।
जिह कुल अजीत लोभी सुजस सुभट सिद्ध अवसाण रो।
उजवाल विरद परियां इता खाटण सुजस खुमाण रो॥
स्रोत
  • पोथी : भारतीय साहित्य रा निरमाता- सिंढायच दयालदास ,
  • सिरजक : दयालदास सिंढायच ,
  • संपादक : गिरिजाशंकर शर्मा ,
  • प्रकाशक : साहित्य अकादमी ,
  • संस्करण : प्रथम